पिछले डेढ़ दशक में बलात्कार औऱ हत्या के मामले में अदालत ने दूसरी बार फांसी की सजा सुनाई है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया गैंगरेप मामले में चार दोषियों की फांसी की सजा को बरकरार रखते हुए इस मामले को 'क्रूरतम' करार दिया।
जस्टिस दीपक मिश्रा, आर बानुमति और अशोक भूषण की पीठ ने मामले की सुनवाई की। फैसला सुनाते हुए मामले की क्रूरता को देखते हुए जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, ऐसा लगता है कि यह किसी दूसरी दुनिया की घटना है।
इसलिए घटना और जख्म की गंभीरता को देखते हुए दोषियों को मिली फांसी की सजा बहाल की जाती है। वहीं बानुमति ने कहा धनंजय चटर्जी मामले को छोड़कर हत्या और बलात्कार के किसी मामले में दोषियों को फांसी की सजा नहीं दी गई। धनंजय चटर्जी के बाद देश में बलात्कार और हत्या के मामले में यह दूसरी फांसी की सजा होगी।
कोलकाता में नाबालिग स्कूली छात्रा से बलात्कार कर उसकी हत्या किए जाने के मामले में कोर्ट ने धनंजय चटर्जी को फांसी की सजा दी गई थी। कोर्ट के फैसले के बाद उसे 14 अगस्त 2004 को फांसी पर लटका दिया गया था। धनंजय चटर्जी के मामले में करीब 14 सालों तक सुनवाई चली थी।
हालांकि निर्भया बलात्कार मामले के बाद देश में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध को लेकर बने कानूनों की समीक्षा के लिए बनी जे एस वर्मा समिति ने बलात्कार के लिए फांसी की सजा दिए जाने की सिफारिश नहीं की थी।
सुप्रीम कोर्ट में मामले की पैरवी करने वाले वकील बी एल कपूर ने मौत की सजा दिए जाने के फैसले का स्वागत करते हुए कहा, 'यह रेयरेस्ट ऑफ द रेयर मामला था, जिसे समाज की सामूहिक चेतना को झिंझोर कर रख दिया था।'
Source : News Nation Bureau