जीत का श्रेय ही नहीं, बल्कि अब राहुल गांधी को हार की भी लेनी होगी जिम्मेदारी

गुजरात विधानसभा चुनाव में सीधे-सीधे कांग्रेस के आक्रामक प्रचार अभियान की अगुवाई कर रहे राहुल गांधी को कांग्रेस का कमान देने की तैयारी लगभग पूरी कर ली गई है।

गुजरात विधानसभा चुनाव में सीधे-सीधे कांग्रेस के आक्रामक प्रचार अभियान की अगुवाई कर रहे राहुल गांधी को कांग्रेस का कमान देने की तैयारी लगभग पूरी कर ली गई है।

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Abhishek Parashar
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जीत का श्रेय ही नहीं, बल्कि अब राहुल गांधी को हार की भी लेनी होगी जिम्मेदारी

कांग्रेस प्रेसिडेंट सोनिया गांधी के साथ राहुल गांधी (फाइल फोटो)

गुजरात विधानसभा चुनाव में सीधे-सीधे कांग्रेस के आक्रामक प्रचार अभियान की अगुवाई कर रहे राहुल गांधी को कांग्रेस का कमान देने की तैयारी लगभग पूरी कर ली गई है।

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पार्टी प्रेसिडेंट सोनिया गांधी ने औपचारिक तौर पर 20 नवंबर को कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक बुलाई है, जिसमें पार्टी के अगले प्रेसिडेंट की चुनाव की तारीखों का ऐलान किया जाएगा।

सूत्रों की माने तो पार्टी के अध्यक्ष पद के राहुल गांधी के अलावा कोई और दावेदार नहीं है। ऐसे में उनका निर्विरोध प्रेसिडेंट चुना जाना तय है।

पिछले साल नवंबर में कार्यसमिति ने सर्वसम्मति से राहुल से पार्टी की कमान संभालने की अपील की थी, जिसे राहुल ने खारिज कर दिया था। राहुल का साफ कहना रहा था कि वह एक प्रक्रिया के तहत चुनकर ही पार्टी की कमान संभालना चाहते हैं।

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और कमोबेश ऐसा ही हुआ। ऐसे में अब सबसे अहम सवाल यह है कि राहुल प्रेसिडेंट बनने से पार्टी के लिए क्या बदलेगा?

1.2014 के लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) में संक्रमण (पुरानी पीढ़ी की जगह नेताओं की नई पीढ़ी) का काम सफलतापूर्वक पूरा हो चुका है।

कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी में नई नेताओं की पूरी पंक्ति सामने आ चुकी है लेकिन कांग्रेस में यह काम अभी तक पूरा नहीं किया जा सका है।

राहुल गांधी के पार्टी की जिम्मेदारी लेने से कांग्रेस में युवा पीढ़ी के नेताओं के आने का रास्ता साफ होगा। अभी तक पार्टी संगठन में सोनिया गांधी और उनके भरोसेमंद नेताओं का दखल रहा है।

राहुल के पार्टी प्रेसिडेंट बनने के बाद पार्टी के संगठन की तस्वीर पूरी तरह से बदल जाएगी, जिसकी लंबे समय से पार्टी के भीतर से मांग उठती रही है।

2. सोनिया गांधी के प्रेसिडेंट होने की वजह से कांग्रेस में अभी तक राहुल गांधी की कोई सीधी जवाबदेही नहीं बनती थी।

सोनिया गांधी के सामने होने की वजह से राहुल का नेतृत्व उभरकर सामने नहीं आ पाया। उन्हें एक तरह से संरक्षण मिला हुआ था और वह संगठन के काम में वैसे लगे हुए थे, जिसकी कोई जवाबदेही नहीं थी।

लेकिन पार्टी की कमान मिलने के बाद अब राहुल की जवाबदेही तय होगी। उनके पास कोई आवरण या ढाल नहीं होगा, जो सोनिया गांधी की मौजूदगी में उन्हें अब तक मिलता रहा है।

इस लिहाज से देखा जाए तो गुजरात चुनाव को राहुल जिस तरह से 'राहुल बनाम मोदी' बनाने में सफल रहे हैं, वह पार्टी प्रेसिडेंट की भूमिका के लिए उनकी तैयारियों को बयां करता है।

जिस आक्रामकता के साथ उन्होंने विधानसभा चुनावी कैंपेन को आगे बढ़ाया, उससे यह लगता है कि वह खुद को इस भूमिका के लिए तैयार भी कर चुके हैं, जिससे अभी तक वह हिचकते रहे थे।

ताजपोशी से पहले की रणनीति

2014 के आम चुनाव में कांग्रेस पिछले चुनाव की 206 सीटों के मुकाबले महज 44 सीटों पर सिमटकर रह गई। वहीं बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत हासिल करते हुए 116 सीटों से बढ़कर 282 तक पहुंच गई।

कांग्रेस की हार के लिए यूपीए-2 में हुए कई घोटालों को जिम्मेदार माना गया, लेकिन उसके बाद पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती नेतृत्व संकट को लेकर थी।

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बढ़ती उम्र और खराब सेहत ने सोनिया गांधी को पार्टी से धीरे-धीरे दूर किया लेकिन इस दौरान राहुल को कमान नहीं दी गई। जबकि कार्यकर्ताओं ने समय-समय पर उन्हें पार्टी का प्रेसिडेंट बनाए जाने की मांग की, जिसे नजरअंदाज कर दिया गया।

दरअसल पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती नरेंद्र मोदी के बरक्स राहुल गांधी के मेकओवर की थी। जिसे बेहद सधी हुई रणनीति की मदद से पूरा किया गया।

1.सैम पित्रोदा की अगुवाई में राहुल के अमेरिकी दौरे का खाका खींचा गया। इस दौरान उन्होंने कई यूनिवर्सिटीज का दौरा किया और कई कार्यक्रमों में भाग लिया।

राहुल का अमेरिकी दौरा मोदी सरकार के 'नोटबंदी' के फैसले और देश में 'गोरक्षा' के नाम पर बढ़ती हिंसा के बीच तय किया गया था।

राहुल ने इन दोनों मुद्दों को लेकर अमेरिकी धरती से मोदी सरकार पर निशाना साधा और साथ ही 'वंशवादी राजनीति' और देश के 'विकास' को लेकर अपना नजरिया सामने रखा, जो यहां सुर्खियां बनीं।

देश की मीडिया उनसे जो सवाल बार-बार करती थी, राहुल ने उसका जवाब बेहद आसानी से अमेरिका की धरती से दे दिया था।

दूसरी रणनीति के तहत राहुल ने पिछले आम चुनाव में कांग्रेस के ऊपर थोपी गई 'हिंदू विरोधी' पार्टी के ठप्पे को तोड़ा और इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात दौरे से ही की गई।

गुजरात के अब तक के चुनावी दौरों में कई बार राहुल गांधी ने हिंदू मंदिरों से पूजा-अर्चना शुरू कर रैलियों की शुरुआत की। और यह बीजेपी के तीर से उसे ही घायल करने की रणनीति थी, जिसमें राहुल कामयाब रहे।

राहुल वैसे समय में कांग्रेस की कमान संभाल रहे हैं, जब वह ऐतिहासिक संकट का सामना कर रही है और उनके लिए गुजरात और हिमाचल प्रदेश का चुनाव एक पहले पड़ाव की तरह होगा।

हालांकि रणनीतिक तौर पर देखा जाए तो यह अगले आम चुनाव के लिए कांग्रेस की तैयारी है, जिसमें नरेंद्र मोदी के सामने राहुल गांधी खड़े होंगे।

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HIGHLIGHTS

  • राहुल वैसे समय में कांग्रेस की कमान संभाल रहे हैं, जब वह ऐतिहासिक संकट का सामना कर रही है 
  • हालांकि रणनीतिक तौर पर देखा जाए तो यह अगले आम चुनाव के लिए कांग्रेस की तैयारी है, जिसमें नरेंद्र मोदी के सामने राहुल गांधी खड़े होंगे

Source : Abhishek Parashar

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