लखीमपुर हिंसा की SC की निगरानी में की जाए CBI जांच
अब दो वकीलों ने भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) को पत्र लिखकर शीर्ष अदालत की देखरेख में यूपी के लखीमपुर खीरी घटनाक्रम की सीबीआई जांच की मांग की है.
highlights
- अधिवक्ता शिव कुमार त्रिपाठी और सीएस पांडा ने लिखा पत्र
- हिंसा अब इस देश में राजनीतिक संस्कृति बन गई है
- आवेदन को जनहित याचिका के रूप में स्वीकार किया जाए
नई दिल्ली:
लखीमपुर खीरी घटनाक्रम तूल पकड़ता जा रहा है. अब दो वकीलों ने भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) को पत्र लिखकर शीर्ष अदालत की देखरेख में यूपी के लखीमपुर खीरी घटनाक्रम की सीबीआई (CBI) जांच की मांग की है. पत्र में इस भीषण घटना में कथित रूप से शामिल मंत्रियों के लिए सजा की भी मांग की गई है. अधिवक्ता शिव कुमार त्रिपाठी और सीएस पांडा की ओर से लिखे गए पत्र में कहा गया है, 'उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में किसानों की हत्या की गंभीरता को देखते हुए, यह माननीय न्यायालय के लिए आवश्यक है कि वह इस मामले में हस्तक्षेप करे, जैसा कि प्रेस में दिखाया गया है.' वकीलों ने दावा किया कि हिंसा अब इस देश में राजनीतिक संस्कृति बन गई है.
लखीमपुर खीरी में रविवार को किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में चार किसानों समेत नौ लोगों की मौत हो गई थी. वकीलों ने कहा कि हिंसाग्रस्त उत्तर प्रदेश जिले में कानून के शासन की रक्षा करने की आवश्यकता है, जो प्रेस रिपोर्टों, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सार्वजनिक अनुभाग से स्पष्ट है. पत्र में कहा गया है कि यह घटना यूपी सरकार और संबंधित नौकरशाहों के साथ-साथ गृह मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कानून तोड़ने वाली पुलिस मशीनरी के खिलाफ निर्देश देने की मांग करती है, ताकि हिंसा की प्रथा को रोका जा सके.'
पत्र में कहा गया है, 'यह सम्मान के साथ प्रस्तुत किया जाता है कि आंदोलनकारी किसान संविधान के अनुच्छेद 21 के अर्थ के भीतर अपनी आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे कृषि समुदायों की भलाई के लिए उचित सौदे के लिए अपनी उचित मांगों और दावों की न्यायसंगतता के विरोध में शांतिपूर्ण रहे हैं.' पत्र में कहा गया है कि किसान अब देश की जनता की भीड़ का प्रतिनिधित्व करने के लिए सड़क पर हैं. वकीलों ने कहा कि उनके आवेदन को जनहित याचिका के रूप में माना जा सकता है, ताकि दोषियों को न्याय के कटघरे में लाया जा सके. पत्र में शीर्ष अदालत से रविवार को हुई इस भीषण घटना में शामिल लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की गई और शीर्ष अदालत की निगरानी में उच्च स्तरीय न्यायिक जांच कराने की भी मांग की गई है.
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