बिहार में आम के पेड़ इस साल मंजर से लदे हैं। मौसम भी अभी तक अनुकूल है, इस कारण किसान भी इस साल आम की पैदावार को लेकर खुश हैं। किसान अभी से ही किसी प्रकार की प्राकृतिक आपदा को छोड़कर अपनी फसल को अन्य किसी प्रकार की बीमारी से बचाने में लगे हैें।
ब्ताया जाता है कि देश में आम की खेती उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश एवं बिहार में प्रमुखता से होती है। देश में लगभग 2316.81 हजार हेक्टेयर में आम की खेती होती है, जिससे 20385.99 हजार टन उत्पादन प्राप्त होता है। आम की राष्ट्रीय उत्पादकता 8.80 टन प्रति हेक्टेयर है। बिहार में आम की खेती 160.24 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में होती है, जिससे 1549.97 हजार टन उत्पादन प्राप्त होता है।
बिहार में आम की उत्पादकता 9.67 टन प्रति हेक्टेयर है जो राष्ट्रीय उत्पादकता से थोड़ी ज्यादा है। उत्पादकता के ²ष्टिकोण से बिहार 27 राज्यों में तेरहवें नम्बर पर आता है। बिहार में ऐसे तो आम के विभिन्न किस्मों की पैदावार होती है, लेकिन दीघा मालदह, जर्दालु, गुलाब खास की फसलें बहुतायत होती है।
बिहार में उत्पादित आम की विभिन्न प्रजातियों में भागलपुर के जर्दालु आम को भारत सरकार की ओर से वर्ष 2018 में जीआई टैग प्रदान किया गया है जो इस प्रभेद की विशिष्टता को दर्शाता है। एपीडा के सहयोग से भागलपुर से 4.5 लाख टन जैविक जर्दालु आम का निर्यात बहरीन, बेल्जियम व इंगलैंड में किया गया है। भागलपुर की मिट्टी की खासियत यह है कि अगर इस इलाके को छोड़ इसे कहीं और लगाया जाए तो जर्दालु की वह खुशबू नहीं रहेगी। इसकी खासियत को देखते हुए ही सरकार ने भागलपुर से सटे मुंगेर व बांका में जर्दालु को विस्तार देने का निर्णय लिया है।
बिहार में फजली, सुकुल, सीपिया, चौसा, कलकतिया, आम्रपाली, मल्लिका, सिंधु, पूसा अरुणिमा, अंबिका, महमूद बहार, प्रभा शंकर और बीजू वेराइटी के आम शामिल हैं। दीघा का मालदह, भागलपुर का जर्दालु और बक्सर का चौसा की लोकप्रियता देश-विदेश में है। दरभंगा को आम की राजधानी कहा जाता है।
आम के किसान का कहना है कि इस साल आम के पेड़ों में अच्छी बौर (मंजर) लगी है। इसे देखकर अंदाजा लगाया जा रहा है कि आंधी से बौर बच गये तो इस बार आम की बंपर पैदावार होगी, जिसका लाभ क्षेत्र के लोगों को मिलेगा। भागलपुर के आम किसान बताते हैं कि पिछले तीन साल से क्षेत्र में आम की फसल अच्छी नहीं थी, लेकिन इस साल आम पेड़ों में लगे बौर से अच्छी फसल की आस लगी हुई है। उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि यह समय मंजरों को कीटाणुओं और गर्मी से बचाने का है। ऐसे में इसकी कैसे देखभाल हो ये काफी महत्वपूर्ण है।
आम के पेड़ों में होने वाली बीमारियों पर विस्तृत शोध करने वाले डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर में मुख्य वैज्ञानिक और सह निदेशक अनुसंधान प्रो डॉ एसके सिंह का कहना है कि अधिकांश बागों में मंजर आ गये हैं, इस समय कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। फल के मटर के बराबर होने तक रुक जाएं, इसके बाद आप कीटनाशकों का प्रयोग कर सकते हैं। इस समय आम के बागों में भारी संख्या में मधुमक्खी एवं सिरफिड मक्खी आई हुई है, उन मधुमक्खियों को हमें डिस्टर्ब नहीं करना चाहिए, क्योंकि वे बाग में परागण का कार्य कर रही होती हैं।
उन्होंने कहा कि यदि आप किसी भी प्रकार की कोई भी दवा छिड़कते है, तो इससे मधुमक्खियों को नुकसान पहुंचेगा और वे आपके बाग से बाहर चली जायेगी तथा फूल के कोमल हिस्सों को भी नुकसान पहुंचने की संभावना रहती है।
इधर, बिहार सरकार ने आम की फसल में भारी गिरावट को देखते हुए इसकी विभिन्न किस्मों जैसे दीघा मालदह, जर्दालु, गुलाब खास, की फसलों को बढ़ाने के लिए अध्ययन करने व संरक्षण योजना तैयार करने का फैसला किया है।
डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.
Source : IANS