अमृतसर का जलियांवाला बाग हत्याकांड के बारे में पढ़कर ही रुह सिहर जाती है। भारत की आज़ादी किन कीमतों पर मिली यह हर साल हर पीढ़ी को जानना चाहिए और उसे समझना चाहिए। गुलाम भारत में ज्यादतियां तो बहुत सही लेकिन इतने बड़े पैमाने पर नरसंहार अमृतसर के जलियांवाला बाग में पहली बार हुआ था। इस कांड ने ब्रिटिश राज की बदसूरती को भारतीयों के सामने उजागर करके रख दिया था। 13 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर में अंग्रेजी राज के जनरल डायर ने मासूम, निहत्थे भारतीयों के साथ खून की होली खेली।
यह दिन था 3 अप्रैल 1919, बैसाखी का त्यौहार था। हर साल अमृतसर शहर में बैसाखी का मेला लगता था। इसी दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में अंग्रेजी सरकार के रोलेट एक्ट के विरोध में एक विशाल सभा रखी गई थी और साथ ही अंग्रेजों के दमनकारी नीतियों के विरोध में अंग्रेजों द्वारा दो नेताओं सत्यपाल और सैफ़ूद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में भी यहां पर सभा आयोजित की गई थी।
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इस वक्त पूरे शहर में कर्फ्यू लगाया गया था बावजूद इसके यहां पर यह आयोजन किया गया जिसमें हज़ारों की तादाद में लोग हिस्सा लेने पहुंचे थे।
मेले में आने के बहाने हज़ारों लोग सभा में आए जहां कुछ नेता भाषण भी देने वाले थे। नेता बाग में ही रोड़ियों के ढेर पर खड़े हो कर लोगों को संबोधित कर ही रहे थे कि यहां पहुंच गया अंग्रेजी सरकार का कर्नल रेग्नल्ड ऐडवर्ड हैरी डायर वहां आ धमका और करीब 90 ब्रिटिश सैनिकों के साथ वहां पहुंच लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरु कर दी।
इस बाग में बाहर निकलने का एक ही रास्ता था जिसे जनरल डायर ने बंद कर दिया। मंजर इतना भयानक था कि अपनी जान बचाने के लिए लोग वहां मौजूद एकमात्र कुएं में कूदने लगे और देखते ही देखते कुल 10 मिनट के अंदर जनरल डायर ने 1650 राउंड गोलियां चला दी।
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इस नरसंहार से देश के साथ दुनिया का दिल भी दहल गया। जान बचाने के लिए कुएं में कूदे लोगों में से लाशों के ढेर निकाले गए थे। सरकारी आकड़ें के मुताबिक इस घटना में 200 लोग घायल हुए और 379 की जानें गई थी, जबकि अनाधिकारिक आंकड़ों की मानें तो इस घटना में 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए थे।
जलियावाला बाग कांड ने दुनिया का ध्यान भारत की ओर खींचा और जनरल डायर को 'बूचर ऑफ इंडिया' भारत का कसाई कहा गया। इस घटना से आक्रोशित देशवासियों का स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सेदारी की जज़्बे को दोगुना कर दिया था।
इस घटना की जांच के लिए बाद में हंटर कमीशन बनाया गया और जलियांवाला की घटना ने देश रवींद्रनाथ टैगोर को भी झकझोर कर रख दिया। जिसके बाद उन्होंने ब्रिटिश सरकार से प्राप्त नाइटहुड की उपाधी भी लौटा दी थी।
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Source : Shivani Bansal