आजादी के 70 साल: स्वतंत्रता आन्दोलन में साहित्यकारों ने अपनी कलम से जगाई लोगों में क्रांति की चेतना

स्वतंत्रता के इस महायज्ञ में समाज के प्रत्येक वर्ग ने अपने-अपने तरीके से बलिदान दिए। इस स्वतंत्रता के यग में साहित्कार और लेखकों ने भी अपना भरपूर योगदान दिया।

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sankalp thakur
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आजादी के 70 साल: स्वतंत्रता आन्दोलन में साहित्यकारों ने अपनी कलम से जगाई लोगों में क्रांति की चेतना

स्वतंत्रता आन्दोलन भारतीय इतिहास का वह युग है जो पीड़ा, कड़वाहट, दंभ, आत्मसम्मान, गर्व, गौरव तथा सबसे अधिक शहीदों के लहू को समेटे है। स्वतंत्रता के इस महायज्ञ में समाज के प्रत्येक वर्ग ने अपने-अपने तरीके से बलिदान दिए। इस स्वतंत्रता के यग में साहित्कार और लेखकों ने भी अपना भरपूर योगदान दिया।

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अंग्रेजो को भगाने में कलमकारों ने अपनी भूमिका बखूबी निभाई। क्रांतिकारियों से लेकर देश के आम लोगों तक के अंदर लेखकों ने अपने शब्दों से जोश भरा। प्रेमचंद की 'रंगभूमि, कर्मभूमि' उपन्यास हो या भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का 'भारत -दर्शन' नाटक या जयशंकर प्रसाद का 'चन्द्रगुप्त' सभी देशप्रेम की भावना से भरी पड़ी है।

इसके अलावा वीर सावरकर की '1857 का प्रथम स्वाधीनता संग्राम' हो या पंडित नेहरू की 'भारत एक खोज' या फिर लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की 'गीता रहस्य' या शरद बाबू का उपन्यास 'पथ के दावेदार' यह सभी किताबें ऐसी है जो लोगों में राष्ट्रप्रेंम की भावना जगाने में कारगर साबित हुई।

उपन्यास और कहानी के अलावा कवियों ने अपनी कविता से लोगों में देशप्रेम की ऐसी अलख जागाई कि लोग घरों से बाहर निकल आए और क्रांतिकारी स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया है।

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की 'भारत-भारती' में उन्होंने लिखा
'जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।
वह नर नहीं, नर-पशु निरा है और मृतक समान है।।'

मैथिलीशरण गुप्त के अलावा सुभद्रा कुमारी चौहान की 'झांसी की रानी' कविता नें अंग्रेजों को लकारने का काम किया
बुन्देले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी की रानी थी।'

पं. श्याम नारायण पाण्डेय ने महाराणा प्रताप के घोड़े ‘चेतक’ के लिए 'हल्दी घाटी' में लिखा-
'रणबीच चौकड़ी भर-भरकर, चेतक बन गया निराला था
राणा प्रताप के घोड़े से, पड़ गया हवा का पाला था
गिरता न कभी चेतक तन पर, राणा प्रताप का कोड़ा था
वह दौड़ रहा अरि मस्तक पर, या आसमान पर घोड़ा था।'

जयशंकर प्रसार ने 'अरुण यह मधुमय देश हमारा' सुमित्रानंदर पंत ने 'ज्योति भूमि, जय भारत देश।' इकबाल ने 'सारे जहाँ से अच्छा हिस्तोस्ताँ हमारा' तो बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' ने 'विप्लव गान' लिखा।

इन सबके अलावा बंकिम चन्द्र चटर्जी का देशप्रेम से ओत-प्रोत गीत 'वन्दे मातरम' ने लोगों के रगो में उबाल ला दिया। अब किसी कीमत पर देश के लोगों को पराधीनता स्वीकार नहीं था।

वन्दे मातरम्!
सुजलां सुफलां मलयज शीतलां
शस्य श्यामलां मातरम्! वन्दे मातरम्!

स्वतंत्रता यज्ञ में इन साहित्यकारों ने अपना कर्तव्य अपने कलम से निबाया। ये वही कलम के सिपाही की जो दम तोड़ती मानवता को पुन: जिवित किया। भारतवासियों में भारतीयता व भारतीय गौरव की भावना का सृजन किया।

Source : News Nation Bureau

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