जम्मू-कश्मीर में सिर्फ 40 महीने पुरानी महबूबा सरकार बीजेपी के गठबंधन तोड़ लेने की वजह से गिर गई। साल 2015 में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के बाद पीडीपी प्रमुख मुफ्ती मोहम्मद सईद के नेतृत्व में बीजेपी ने गठबंधन किया था।
इसके बाद बीजेपी को गठबंधन के तहत डिप्टी सीएम का पद मिला था और वो खुद राज्य के सीएम बने थे। जम्मू-कश्मीर के 89 सीटों वाले विधानसभा में बीजेपी को 25 जबकि पीडीपी को 28 सीटें मिली थी। मुफ्ती मोहम्मद सईद की मौत के बाद उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती को मुख्यमंत्री पद मिला था।
गठबंधन के बाद से ही बीजेपी के कुछ नेता और विपक्षी इसे बेमेल गठबंधन बता रहे थे और राज्य में सरकार चलाने के दौरान कई बार दोनों पार्टियों में तनातनी की भी खबरें आती रही।
अब पीडीपी सरकार से समर्थन वापस लेने की बीजेपी के महासचिव राम माधव कई कारण बता रहे हैं। उनका आरोप है कि बीजेपी कोटे के मंत्रियों की सरकार में अनदेखी हो रही थी और आतंकियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई को लेकर पीडीपी और बीजेपी में मतभेद थे।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती के आग्रह पर ही रमजान में एकतरफा सीजफायर करने का ऐलान किया था जिसका सुरक्षबलों को अच्छा-खासा नुकसान भी हुआ।
बताया जा रहा है कि महबूबा इस सीजफायर को आगे भी जारी रखना चाहती थी लेकिन केंद्र सरकार इसके लिए राजी नहीं हुई जिससे गठबंधन के दोनों दलों में तनाव काफी बढ़ गया था। इसके अलावा भी कई अहम कारण रहे जिससे यह गठबंधन सिर्फ साढ़ें तीन साल में टूटा गया।
1. रमजान में सीजफायर पर मतभेद
ऐसा माना जा रहा है कि रमजान में सीजफायर को लेकर केंद्र सरकार और महबूबा सरकार में मतभेद था और मोदी सरकार एकतरफा सीजफायर के फैसले के खिलाफ थी। लेकिन महबूबा मुफ्ती की दबाव की वजह से केंद्र सरकार ने रमजान के पूरे महीने के दौरान एकतरफा सीजफायर का ऐलान कर दिया और सेना के आतंक विरोधी अभियान को रोक दिया गया। इससे फैसले के बाद वहां आतंकी हमले बढ़ गए और आतंकियों को भी जमा होने का मौका मिल गया।
2. ऑपरेशन ऑलआउट में राज्य सरकार का सहयोग नहीं
सेना घाटी से आतंकियों की सफाई के लिए साल 2017 से ही ऑपरेशन ऑलाआउट चला रखा है। बीजेपी का आरोप है कि राज्य की महबूबा सरकार इसमें सहयोग नहीं कर रही थी क्योंकि इससे उनका हित जुड़ा हुआ था।
3. 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में गठबंधन से नुकसान का खतरा
अब लोकसभा चुनाव में महज 10 महीने का वक्त रह गया है। ऐसे में मोदी सरकार पीडीपी से गठबंधन को लेकर अपनी राष्ट्रवादी और हिन्दुत्ववादी छवि को खराब नहीं करना चाहती।
इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि विधानसभा चुनाव में पीएम ने पीडीपी को अलगाववादी गुटों का समर्थक बताया था। पीडीपी कई बार कश्मीर समस्या के लिए अलगाववादियों से भी बातचीत करने के पक्षी में थी जिसके लिए केंद्र सरकार तैयार नहीं थी। बीजेपी यह नहीं चाहती थी कि आनेवाले चुनाव में कश्मीर को देश से अलग करने वाले नेताओं के साथ पीएम मंच पर दिखें।
4. पत्थरबाजों पर सख्ती से महबूबा थी नाराज
सेना के ऑपरेशन के दौरान आए दिन पत्थरबाज सुरक्षबलों पर पत्थर फेंकेने लगते थे जिससे आतंकी बचकर भागने में कामयाब हो जाते थे। ऐसे में केंद्र सरकार पत्थरबाजों के खिलाफ सख्त एक्शन चाहती थी लेकिन पीडीपी सरकार ने पत्थरबाजों के खिलाफ दर्ज सभी एफआईआर वापस ले लिया। सीएम महबूबा पत्थरबाजों को कड़ी सजा देने के पक्ष में नहीं थी जबकि सेना के नुकसान के लिए केंद्र सरकार पत्थरबाजों को ही बड़ा कारण मानती थी।
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5. गठबंधन में बीजेपी के मंत्रियों की नहीं थी कोई पूछ
ऐसा माना जा रहा था कि बीजेपी-पीडीपी गठबंधन की सरकार में हर फैसला सीएम महबूबा मुफ्ती बिना बीजेपी कोटे के मंत्रियों को भरोसे में लिए ही करती थीं। बीजेपी महासचिव राम माधव ने साफ आरोप लगाया कि पीडीपी ने हमारे मंत्रियों को काम करने नहीं दिया। उन्होंने कहा राज्य में सुरक्षा के हालात खराब हो गए और रमज़ान सीज़फायर का भी सम्मान नहीं किया गया जबकि ये फैसला महबूबा मुफ्ती के आग्रह पर लिया गया था।
गौरतलब है कि पीडीपी ने भी कहा है कि यह गठबंधन टूटना पहले से ही तय था।
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Source : News Nation Bureau