आज की दुनिया में दो प्रमुख बल हैं, यानी कि एक ओर हैं अमेरिका और पश्चिम आदि के विकसित देश, और दूसरी ओर हैं ब्रिक्स तथा एससीओ सहित उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं। इन दोनों बलों का एक आम मंच है जी 20। उधर चीन, भारत और रूस के लिए, हम जी 20, ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन सब के सदस्य हैं, हम दुनिया के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां उठाएंगे।
संयुक्त राज्य अमेरिका हमेशा अपने को विश्व नेता मानता है, लेकिन विश्व मामले में इसका नेतृत्व कमजोर होता रहा है। दुनिया में इधर-उधर उभरती संकटों का समाधान करने में अमेरिका असमर्थ बन गया है। उधर, हाल ही में 19 देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने के लिए आवेदन जमा किए हैं, जिनमें मिस्र, इंडोनेशिया, अर्जेंटीना और सऊदी अरब जैसे देश भी हैं, जो लंबे समय तक अमेरिका के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखते हैं। उदाहरण के लिए, मिस्र एक ऐसा देश है जो बड़ी संख्या में अमेरिकी हथियार खरीदता है। और मिस्र की सेना का प्रशिक्षण भी अमेरिकी सेना के मानकों के अनुसार किया जाता है। उधर सऊदी अरब भी बड़ी संख्या में अमेरिकी हथियारों से लैस होने के अलावा, लंबे समय से मध्य पूर्व के मुद्दों पर अमेरिका के साथ संगत रहा है। लेकिन ये देश अब ब्रिक्स के ढांचे के भीतर चीन, भारत और रूस के साथ संयुक्त रूप से अंतर्राष्ट्रीय मामलों को संभालना चाहते हैं। उदाहरण के लिए, सऊदी अरब और ईरान ने चीन की मध्यस्थता के तहत राजनयिक संबंधों को फिर से शुरू किया, जिसने अमेरिका की भागीदारी को पूरी तरह से बाहर कर दिया। विकासशील देशों की स्वतंत्रता की बढ़ती भावना विश्व शांति के लिए अत्यंत लाभदायक है।
आज अंतर्राष्ट्रीय मामलों में ब्रिक्स देशों की भूमिका महत्वपूर्ण होती जा रही है। वर्तमान में, ब्रिक्स देशों का भूमि क्षेत्र दुनिया के कुल क्षेत्रफल का 26.46 प्रतिशत है, और इसकी आबादी दुनिया की कुल आबादी का 41.93 प्रतिशत है। यदि ब्रिक्स अपनी सदस्यता का विस्तार करता है, तो ब्रिक्स संगठन राजनीति और अर्थव्यवस्था के मामले में पश्चिम के जी 7 की तुलना में अधिक प्रभाव वाला संगठन बन जाएगा। ब्रिक्स देशों ने हमेशा बहुपक्षवाद को मजबूत करने, सुधार को बढ़ावा देने और वैश्विक आर्थिक विकास और स्थिरता को बढ़ावा देने के मूल्यों का पालन किया है, जिसकी दुनिया भर के कई देशों में बहुत बड़ा प्रभाव है। 14वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में जारी पेइचिंग घोषणा के मुताबिक चर्चाओं के माध्यम से ब्रिक्स विस्तार प्रक्रिया को बढ़ावा दिया जाएगा। चीन अन्य उभरते बाजार देशों और विकासशील देशों के साथ सहयोग को मजबूत करने के लिए ब्रिक्स भागीदारों के साथ काम करेगा और आम सहमति के आधार पर ब्रिक्स विस्तार की प्रक्रिया को बढ़ावा देगा।
ब्रिक्स के अलावा, हाल ही में एससीओ यानी कि शंघाई सहयोग संगठन के तंत्र के तहत भी कई मंत्रिस्तरीय बैठकें आयोजित हुईं। इन देशों का भी अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक जीवन में व्यापक प्रभाव है। यहां तक कि कुछ थिंक टैंकों ने यह भी सुझाव दिया है कि संयुक्त राष्ट्र संगठन के मामलों पर अमेरिका और पश्चिम के एकाधिकार को देखते हुए, बड़ी संख्या में विकासशील देश अपनी आवाज नहीं उठा सकते हैं, और एससीओ को भी संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक संगठन के रूप में बनाना चाहिए। जो समन्वय और सहयोग के आधार पर अंतर्राष्ट्रीयव्यवस्था को अधिक न्यायपूर्ण और उचित दिशा में बढ़ावा देगा। एससीओ भी अपनी सुरक्षा परिषद या यहां तक कि एक शांति सेना स्थापित कर वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र के साथ-साथ काम कर सकेगा।
यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ब्रिक्स और एससीओ भविष्य में अंतरराष्ट्रीय राजनीति, सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और वित्त के क्षेत्र में तेजी से महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। इससे न केवल विकासशील सदस्यों के हितों को लाभ होगा, बल्कि विश्व की दीर्घकालिक स्थिरता के लिए दूरगामी प्रभाव भी होंगे। इस साल अगस्त में दक्षिण अफ्रीका में आयोजित होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में सदस्यता के विस्तार की आधिकारिक घोषणा हो सकती है। तबसे ब्रिक्स देशों के संकेतक जी 7 सदस्यों से अधिक हो जाएंगे। चीन, भारत और रूस के लिए, हम सब जी 20, ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य हैं, हम अंतर्राष्ट्रीय मामलों में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
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Source : IANS