नए साल के शुरुआत में ही तिरुवनंतपुरम की दो महिलाओं ने इतिहास रच दिया है. बुधवार सुबह 3:45 मिनट पर दो महिलाओं ने केरल के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पा लिया. न्यूज़ एजेंसी एनआई के मुताबिक बिंदू और कनकदुर्गा नाम की दो महिलाओं ने मंदिर में घुसकर भगवान अयप्पा के दर्शन किए. दोनों महिलाओं की उम्र 40 वर्ष बतायी जा रही है. बताया जा रहा है कि केरल पुलिस ने दोनों महिलाओं को मंदिर के अंदर प्रवेश पाने में काफी मदद की और आख़िर तक उनके साथ रहे. कुछ पुलिसकर्मी अपने वर्दी में महिलाओं के साथ मौजूद थे तो कुछ सिविल ड्रेस में.
केरल की दो महिलाओं द्वारा सबरीमाला मंदिर में प्रार्थना व दर्शन करने के बाद बुधवार को मंदिर बंद कर दिया गया है. ये महिलाएं उसी आयु वर्ग की हैं, जिस पर अब तक प्रतिबंध लगा हुआ था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 10-50 आयु वर्ग की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश करने पर लगी रोक को हटा दिया है, लेकिन इसके बावजूद कुछ संगठनों द्वारा न्यायालय के इस फैसले का विरोध किया जा रहा है.
फ़िलहाल मंदिर का शुद्धिकरण किया जा रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दो महिलाओं के मंदिर में प्रवेश की वजह से शुद्धिकरण किया जा रहा है हालांकि अधिकारिक रुप से इस बात की कोई पुष्टि नहीं की गई है.
केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने दोनों महिलाओं की मंदिर में एंट्री की ख़बर की पुष्टि करते हुए कहा, 'आज दो महिलाओं ने सबरीमाला मंदिर के अंदर जाकर पूजा की है. हमने पुलिस को आदेश दिया था कि अगर कोई महिला मंदिर जाकर पूजा-प्रार्थना करना चाहती है तो उसके लिए सुरक्षा व्यवस्था का पूरा इंतज़ाम किया जाए.'
इन दोनों महिलाओं ने दिसंबर 2018 में भी मंदिर के अंदर घुसने की कोशिश की थी लेकिन ऐसा कर पाने में वो असफल रही थीं. कई महिला कार्यकर्ताओं ने भी मंदिर में प्रवेश की कोशिश की थीं लेकिन भारी विरोध के कारण वे ऐसा नहीं कर पाईं.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर को दिए अपने फैसले में कहा था कि सभी उम्र की महिलाओं (पहले 10-50 वर्ष की उम्र की महिलाओं पर बैन था) को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश मिलेगी. वहीं सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर 48 पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए 22 जनवरी की तारीख मुकर्रर की गई है.
कोर्ट ने क्या कहा था
अदालत ने कहा था कि महिलाओं का मंदिर में प्रवेश न मिलना उनके मौलिक और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है. अदालत की पांच सदस्यीय पीठ में से चार ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया जबकि पीठ में शामिल एकमात्र महिला जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अलग राय रखी थी.
पूर्व मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ने जस्टिस एम.एम. खानविलकर की ओर से फैसला पढ़ते हुए कहा, 'शारीरिक या जैविक आधार पर महिलाओं के अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता. सभी भक्त बराबर हैं और लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं हो सकता.'