दिल्ली-एनसीआर के लगभग 100 स्कूलों को एक पायलट प्रोजेक्ट में शामिल किया जाएगा, जिसका उद्देश्य किशोरों और युवाओं के बीच सड़क यातायात के दौरान जख्मी होने की घटनाओं को रोकने के लिए साक्ष्य-आधारित हस्तक्षेप विकसित करना है।
एक अधिकारी ने आईएएनएस को बताया कि पायलट प्रोजेक्ट में तीन शहरों- दिल्ली, जयपुर और भोपाल को शामिल किया गया है।
प्रोग्राम फॉर रिस्क बिहेवियर, एटीट्यूड इन ट्रॉमा प्रिवेंशन (पीआरएटीएपी) स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस), विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और एम्स-दिल्ली की एक संयुक्त पहल है, जो स्कूली बच्चों के बीच सड़क यातायात के दौरान जख्मी होने की घटनाओं पर केंद्रित है।
पीआरएटीएपी विभिन्न श्रेणियों में जोखिम कारकों की पहचान करेगा, जैसे कि जोखिम भरे व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक, सड़क पर गंभीर चोट के लिए जिम्मेदार कारक, दुर्घटना के बाद के परिणामों को प्रभावित करने वाले, जोखिम वाले कारक आदि।
अध्ययन के निष्कर्ष स्कूली बच्चों के बीच ज्ञान, दृष्टिकोण और प्रथाओं का पता लगाएंगे जो सड़क यातायात में चोटों के लिए जिम्मेदार हैं। साथ ही, सड़क यातायात चोटों को रोकने के लिए जोखिम संचार रणनीतियों का विकास किया जाएगा।
विश्व बैंक के अनुसार, सड़क सुरक्षा दक्षिण एशिया के लिए एक महत्वपूर्ण विकास प्राथमिकता है, जो लोगों के स्वास्थ्य, कल्याण और आर्थिक विकास को प्रभावित करती है।
हर साल सड़क यातायात में 13.5 लाख मौतें होती हैं, जिनमें 30 प्रतिशत से अधिक 25 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के मामले हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है, सड़क दुर्घटनाएं 15 से 29 आयु वर्ग के युवाओं के लिए सबसे बड़ा हत्यारा और जख्मी करने वाली कारक बनी हुई हैं। सड़क दुर्घटनाओं में मौतों का आंकड़ा एचआईवी/एड्स और मलेरिया से होने वाली मौतों से अधिक है।
दक्षिण एशिया सड़क से संबंधित दुर्घटनाओं के लिए विशेष रूप से संवेदनशील रहा है, जहां दुनिया के किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में सड़क दुर्घटनाओं में अक्सर मोटरसाइकिल चालक, साइकिल चालक, पैदल चलने वालों और सार्वजनिक परिवहन उपयोगकर्ताओं की मौत हो जाती है।
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Source : IANS