मोहन भागवत ने बताया कैसे विश्व गुरु बनेगा भारत, बोले- समाज कानून नहीं, संवेदना और अपनत्व से चलता है

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने शुक्रवार को कहा कि एक सशक्त समाज केवल कानूनों से नहीं, बल्कि संवेदना, अपनापन और पारस्परिक समझ से संचालित होता है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने शुक्रवार को कहा कि एक सशक्त समाज केवल कानूनों से नहीं, बल्कि संवेदना, अपनापन और पारस्परिक समझ से संचालित होता है.

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Dheeraj Sharma
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Mohan Bhagwat

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने शुक्रवार को कहा कि एक सशक्त समाज केवल कानूनों से नहीं, बल्कि संवेदना, अपनापन और पारस्परिक समझ से संचालित होता है. उन्होंने कहा कि भारत का आध्यात्मिक दृष्टिकोण ही उसे दुनिया से अलग बनाता है और जब हर व्यक्ति अपने भीतर की रोशनी को जगाएगा, तभी भारत विश्व गुरु के रूप में खड़ा होगा. उन्होंने कहा कि अपनामन दिखाने पर ही भारत विश्व गुरू बन पाएगा. 

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हर व्यक्ति अपने भीतर का दीप जलाए

भागवत ने कहा कि हर इंसान के अंदर एक दीपक है, जो प्रेम, समानता और एकता का प्रतीक है. उन्होंने कहा- हमें अपने हृदय के दीप को इतना प्रज्वलित करना होगा कि उसका प्रकाश दूसरों के जीवन को भी रोशन करे. उन्होंने यह भी जोड़ा कि समाज में स्थायी परिवर्तन कानून से नहीं, बल्कि दिलों के जुड़ाव से आता है. भारत की परंपरा का सार यही है- आत्मीयता और संवेदना से समाज निर्माण.

भारत की सबसे बड़ी पूंजी है अपनापन

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि आज भारत विज्ञान, विद्या और संसाधनों के मामले में विश्व के बराबर खड़ा है, लेकिन उसकी सबसे बड़ी पूंजी है ‘अपनापन’। यही गुण भारत को विश्व में विशिष्ट बनाता है. उन्होंने कहा कि विश्व के पास ज्ञान, विज्ञान और धन तो है, पर वह आत्मीयता नहीं जो भारत की संस्कृति का मूल है। भारत को यह सिखाना है कि विज्ञान और आध्यात्म साथ-साथ चल सकते हैं.

आत्मा और चेतना की भारतीय परंपरा

भागवत ने भारतीय दर्शन की व्याख्या करते हुए कहा कि हमारी परंपरा मानती है कि हर जीव में एक ही चेतना विद्यमान है, जिसे ब्रह्म या ईश्वर कहा गया है. उन्होंने कहा कि आज आधुनिक विज्ञान भी इस सत्य को स्वीकार कर रहा है कि कॉन्शसनेस (चेतना) सार्वभौमिक है, स्थानीय नहीं. जिस सत्य को हमारे ऋषि-मुनियों ने युगों पहले जाना, आज विज्ञान उसी तक पहुंचा है। भारत ने इस ज्ञान को समझने के साथ-साथ व्यवहार में भी जिया है.

भारत को विश्व को जोड़ने की जिम्मेदारी निभानी होगी

भागवत ने कहा कि भारत के पास अब साधन, विद्या और विज्ञान सब कुछ है, इसलिए उसे दुनिया को एकता और शांति का मार्ग दिखाने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए. उन्होंने कहा कि समाज सेवा और एकता के कार्य करने वाले लोगों को विश्वास रखना चाहिए कि उनका प्रयास केवल सफल नहीं बल्कि सार्थक भी है.

उन्होंने अंत में कहा कि जब भारत अपनी परंपरा, संस्कृति और मानवीय संवेदनाओं के आधार पर आगे बढ़ेगा, तब पूरा विश्व सुख, शांति और सुंदरता की ओर अग्रसर होगा.

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