कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि देश में एक बार फिर इमरजेंसी का डर फैलाकर राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास किया जा रहा है. उन्होंने आरोप लगाया कि इमरजेंसी के 50 साल पूरे होने पर केंद्र सरकार की ओर से जारी सर्कुलर सिर्फ विपक्ष को बदनाम करने की साजिश है.
खरगे ने कहा, "सरकार ने एक नया सर्कुलर जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि आपातकाल में संविधान और लोकतंत्र को खत्म किया गया था. यह प्रचार हर राज्य में किया जा रहा है. इसके लिए बाकायदा पत्र जारी कर प्रचार चलाया जा रहा है." उन्होंने चुनाव आयोग को कठपुतली करार देते हुए कहा कि "यह लोग कह रहे हैं कि हम चुनाव जीत रहे हैं, लेकिन हकीकत ये है कि मशीनें चुनाव जीत रही हैं."
कांग्रेस अध्यक्ष ने केंद्र पर संविधान विरोधी मानसिकता का आरोप लगाते हुए कहा कि "जिन लोगों का संविधान निर्माण में कोई योगदान नहीं रहा, वे आज संविधान बचाने की बातें कर रहे हैं. बाबासाहेब अंबेडकर, पंडित नेहरू और गांधी जी की तस्वीरें जलाने वाले आज संविधान की बात कर रहे हैं. केंद्र जिस मनुस्मृति के सिद्धांतों को मानती है, उसमें संविधान का कोई स्थान नहीं है."
शशि थरूर द्वारा लिखी गई बातों पर पूछे गए सवाल पर खरगे ने कहा, "जिसको जो लिखना है, वह लिखे. हम उस पर दिमाग नहीं लगाना चाहते. हम देश के लिए लड़ रहे हैं और लड़ते रहेंगे. इस बयान से साफ है कि कांग्रेस अब सरकार के हर मुद्दे पर आर-पार की लड़ाई के मूड में है और आने वाले दिनों में यह टकराव और तेज़ हो सकता है.
बीजेपी का कांग्रेस पर पलटवार
वहीं, भाजपा सांसद संबित पात्रा ने कहा, "...आज से 50 वर्ष पहले आपातकाल के रूप में देश के लोकतंत्र पर हमला हुआ था. यह 50वां साल है जब देश पर इंदिरा गांधी की सरकार, कांग्रेस पार्टी ने आपातकाल लगाया था... आज भाजपा समग्र भारतवर्ष में इस विषय को ध्यान में रखते हुए, इसे काला दिवस के रूप में प्रस्तुत कर रही है. ऐसे में कांग्रेस पार्टी की बौखलाहट हमें दिखाई दे रही है. कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने जिस भाषा में देश के प्रधानमंत्री के लिए शब्द कहे हैं, वह निंदनीय है... कांग्रेसियों को पता नहीं है कि आम हिंदुस्तानियों ने इमरजेंसी के दौरान किस प्रकार के कष्टों और यातनाओं को सहा था. लगभग 1.5 लाख लोग रातों-रात जेलों में भर दिए गए थे... कई लोगों ने अपने ऊपर हुई यातनाओं के कारण मृत्यु का वरण किया... ऐसे में हमारा दायित्व है कि हम ना केवल भारतवर्ष को बल्कि आगामी पीढ़ी को भी इस विषय से अवगत कराएं और यह भूल दोबारा दोहराई ना जाए... जिस प्रकार का व्यवहार मल्लिकार्जुन खरगे ने आज किया है मुझे लगता है कि यह भी लोकतंत्र का मखौल उड़ाना है... आप स्वतंत्रता संग्राम के समय की बात कर सकते हैं तो हम उस(आपातकाल) समय की बात क्यों नहीं कर सकते?... केवल और केवल एक व्यक्ति की महत्वकांक्षाओं के कारण आपातकाल लगाया गया था क्योंकि कोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को निरस्त किया था. सत्ता में बने रहने के लिए बिना कैबिनेट के इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया था..."