Kakori Conspiracy: देश की आजादी को लेकर हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को आज भी याद किया जाता हे. उनके अथक प्रयास के बाद ही आज अब खुली सांस में हवा ले पा रहे हैं. देश की स्वतंत्रता को लेकर उन्होंने अपनी जान दांव लगा दी. इंग्लिश अधिकारी सांडर्स की हत्या हो, गांधी जी के एक आह्वान पर देशवासियों का एक साथ खड़ा होना या चौरीचौरा में 3 भारतीय नागरिकों की मौत के बाद गुस्साई भीड़ का थाना फूंकना हो. इसके दो साल बाद काकोरी में क्रांतिकारियों का ट्रेन लूटना हो. अंग्रेजों के खजाने लूटने की हिमाकत 10 युवा क्रांतिकारियों ने दिखाई थी.
अंग्रेजों को नाको चने चबवा दिए
इस हमले में पूरी योजना के तहत अंजाम दिया गया था. स्वतंत्रता सेनानियों में बुद्धि विवेक के बल पर एक स्टेशन पर धावा बोल दिया. उन्होंने अंग्रेजों को नाको चने चबवा दिए. ये कहानी वहां से आरंभ होती है जहां से असहयोग आंदोलन के समापन की घोषणा हुई.
आपको बता दें कि 1922 में चौरी चौरा कांड में 22 पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद से दुखी होकर महात्मा गांधी ने अपने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया. कांग्रेस पार्टी का एक वर्ग इस आंदोलन की वापसी नहीं चाहता था. क्रांतिकारी दो भाग में बंट गए गरम दल और नरम दल.
काकोरी ट्रेन लूट कांड की योजना तैयार की गई
गरम दल के अनुसार, आजादी अहिंसा से नहीं बल्कि बंदूक के दम पर हासिल हो सकती है. इसके लिए हथियार खरीद को लेकर पैसों की जरूरत पड़ने वाली है. इस सोच से ही काकोरी ट्रेन लूट कांड की योजना तैयार की गई. वर्ष 1925 और तारीख थी 9 अगस्त थी. सहारनपुर से चलने वाली 8 डाउन पैसेंजर में रोशन सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ुल्लाह खां, राजेंद्र लाहिड़ी, दुर्गा भगवती चंद्र वोहरा, सचींद्र बक्शी, चंद्रशेखर आजाद, बनवारी लाल, मुकुंदी लाल, सचिंद्र नाथ सान्याल और मन्मथ नाथ गुप्ता समेत 10 क्रांतिकारी इस ट्रेन में सवार हो गए.
ट्रेन की जंजीर तय समय पर खींची गई
योजना के तहत अशफ़ाकुल्लाह खां, राजेंद्र लाहिड़ी और सचींद्र बक्शी सेकंड क्लास में मौजूद थे. वहीं बाकी सब थर्ड क्लास में बैठाए गए. ऐसी रणनीति बनाई गई थी कि तीन क्रांतिकारियों के सेकंड क्लास में यात्रा करने के कारण ट्रेन को रोकना था. ट्रेन की जंजीर तय समय पर खींची गई. ट्रेन जैसे ही हरदोई की सीमा को पार करके काकोरी पहुंची, तभी चेन खींच दी गई. गार्ड के डिब्बें में रखे सरकारी खजाने को लूट लिया गया. अंग्रेज पुलिसकर्मियों और क्रांतिकारियों के बीच गोलीबारी भी हुई.
गोलीबारी के बीच पास में मौजूद आम के बाग में 200 किलो खजाने से भरे बक्से को ले जाया गया. यहीं अशफ़ाक़ुल्लाह खां ने इसे कुल्हाड़ी से काटा. सब कुछ एक चादर में बांध आजादी के मतवाले यहां से फरार हो गए. इस खजाने में कुल 4601 रुपये रखे थे.