जज साहब यह सजा मौत से भी बदतर है मुझे फाँसी दे दी जाए, SC ने कहा- आप तय नही कर सकते सजा..क्या है पूरा मामला ?

सुप्रीम कोर्ट में दोषी की ओर से पेश वकील वरुण ठाकुर ने दलील देते हुए कहा कि इस मामले में सजा न्यायिक स्वीकारोक्ति पर आधारित थी... कोर्ट ने मामले में हैरानी  जताते हुए कहा कि अब क्या हमें मुकदमे को फिर से खोलना चाहिए....

सुप्रीम कोर्ट में दोषी की ओर से पेश वकील वरुण ठाकुर ने दलील देते हुए कहा कि इस मामले में सजा न्यायिक स्वीकारोक्ति पर आधारित थी... कोर्ट ने मामले में हैरानी  जताते हुए कहा कि अब क्या हमें मुकदमे को फिर से खोलना चाहिए....

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Mohit Sharma
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जज साहब यह सजा मौत से भी बदतर है मुझे फाँसी दे दी जाए

पत्नी की हत्या के लिए 30 साल से जेल में बंद व्यक्ति के जीवन पर्यंत आजीवन कारावास को फाँसी से कहीं अधिक बदतर बताने पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप चाहते हैं कि आपकी सजा को फांसी में बदल दिया जाए... पत्नी की हत्या के लिए दोषी स्वामी श्रद्धानंद उर्फ ​​मुरली मनोहर मिश्रा ने रिहाई की गुहार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह बिना किसी पैरोल या छूट के लगातार जेल में हैं और जेल में रहने के दौरान उनके खिलाफ कोई प्रतिकूल मामला दर्ज नहीं किया गया है...

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सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई करने वाले जजो में  जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस पीके मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने जेल से रिहाई के मांग को लेकर दायर याचिका को खारिज कर दिया...वहीं  सुप्रीम कोर्ट ने SC के जुलाई 2008 के फैसले के लिए दाखिल की गई पुर्नविचार याचिका के लिए  अलग से सुनवाई करने को तैयार हो गई है.  दरअसल 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने मामले में दोषी स्वामी श्रद्धानंद को आदेश दिया था कि उसे उसके बचे जीवन तक जेल से रिहा नहीं किया जाएगा. 


सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सुनवाई के दौरान कही अहम बातें

वही सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए दोषी के वकील से  कहा कि आप चाहते हैं कि इसे फांसी में बदल दिया जाए ... दोषी के वकील ने कहा कि यदि संभव हो तो आज की तारीख में फांसी बेहतर स्थिति हो सकती है.... सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या आपने अपने क्लाइंट  से बात की है...सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई करने वाले जज से वकील ने जवाब दिया मैंने उनसे बात नहीं की है... कोर्ट में पेश वकील ने दलील दी कि श्रद्धानंद को दी गई ऐसी सजा, तत्कालीन भारतीय दंड संहिता के तहत प्रदान नहीं की गई थी...

कोर्ट मामले में उचित सजा देगी

सुप्रीम कोर्ट में दोषी की ओर से पेश वकील वरुण ठाकुर ने दलील देते हुए कहा कि इस मामले में सजा न्यायिक स्वीकारोक्ति पर आधारित थी... कोर्ट ने मामले में हैरानी  जताते हुए कहा कि अब क्या हमें मुकदमे को फिर से खोलना चाहिए....सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट ने भी दोषी को मिली सजा को बरकरार रखा.. कोर्ट ने कहा किसी भी आरोपी को दोषसिद्धि के आधार पर मौत की सजा मांगने का अधिकार नहीं है.... आप अपनी जान नहीं ले सकते है.. आत्महत्या का प्रयास करना भी एक अपराध है... इसलिए आप यह नहीं कह सकते कि अदालत को मृत्युदंड देना होगा... कोर्ट तमाम तथ्यों को देखकर ही उचित सजा देगी... मामले में दोषी के वकील ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई सजा IPC की धारा 432 के तहत समय से पहले रिहाई के लिए याचिका दाखिल करने के श्रद्धानंद के अधिकार को बाधित करती है... सुप्रीम कोर्ट ने कहा उम्रकैद  (जीवन पर्यंत आजीवन कारावास की) सजा आपको फांसी से बचाने के लिए दी गई थी...

बेहद संगीन है मामला....

सुप्रीम कोर्ट ने मामले में दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान श्रद्धानंद के वकील ने कहा कि जेल में रहने के दौरान उसके खिलाफ कोई खराब रिपोर्ट नहीं है और उसे सर्वश्रेष्ठ कैदी के लिए 5 पुरस्कार भी मिले हैं... उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में सवाल यह है कि क्या मैं (मुवक्किल) अब भी वही व्यक्ति हूं…जो अपराध के समय था. सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताते हुए कर्नाटक सरकार समेत अन्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.... सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई चार हफ्ते बाद करेगा .. श्रद्धानंद की पत्नी शकेरेह मैसूर की तत्कालीन रियासत के पूर्व दीवान सर मिर्जा इस्माइल की पोती थीं....उनकी शादी अप्रैल 1986 में हुई थी और मई 1991 के अंत में शकेरेह अचानक गायब हो गयी थीं... मार्च 1994 में केंद्रीय अपराध शाखा, बेंगलुरु ने लापता शकेरेह के बारे में शिकायत की जांच अपने हाथ में ली... गहन पूछताछ के दौरान श्रद्धानंद ने पत्नी की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली... शकेरेह के शव को कब्र से निकाला गया और मामले में श्रद्धानंद को गिरफ्तार कर लिया गया...

शकेरेह खलीली कौन थी ?

शकेरेह का जन्म 27 अगस्त, 1947 को मद्रास में एक भारतीय-फ़ारसी मुस्लिम परिवार में हुआ था. 1900 के दशक की शुरुआत से ही उनका परिवार सिंगापुर में रहता था जहाँ शकेरेह ने स्कूल की पढ़ाई की थी.

वह मैसूर, जयपुर और हैदराबाद के दीवान सर मिर्ज़ा इस्माइल की सबसे छोटी बेटी थीं और गुलाम हुसैन नमाजी और गौहर ताज बेगम नमाजी नी मिर्ज़ा की बेटी भी थीं. गौहर ताज सिंगापुर में एक समाजसेवी और परोपकारी महिला थीं जो कई चैरिटी कार्यों में शामिल थीं. 

शकेरेह खलीली की हत्या का मामला

स्वामी श्रद्धानंद उर्फ ​​मुरली मनोहर मिश्रा ने साल 1991 के अप्रैल महीने में खलीली की हत्या कर दी और उसे उसके ही घर में दफना दिया. उसने उसे लापता घोषित करने से पहले इस बात पर जोर दिया कि वह कही पर यात्रा कर रही थी. वही तीन साल बाद 1994 में पुलिस उसके अवशेषों का पता लगाने और उसे गिरफ्तार करने में सफल रही. उसने कथित तौर पर उसे नशीला पदार्थ दिया और फिर अपराध के लिए उसके शरीर को एक विशेष रूप से निर्मित लकड़ी के बक्से के अंदर दफना दिया. जिसके बाद स्वामी को निचली और हाई कोर्ट ने इस संगीन अपराध के लिए मौत की सज़ा सुनाई थी..लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्वामी की सज़ा को घटाकर उसका जीवन खत्म न होने तक उम्रकैद की सजा में बदल दिया. वह अब मध्य प्रदेश की सागर सेंट्रल जेल में बंद है.

रिपोर्ट -सुशील कुमार पांडेय

Supreme Court
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