जमीयत उलेमा-ए-हिंद प्रमुख अरशद मदनी ने 'उदयपुर फाइल्स' पर रोक की उठाई मांग, बताया देश की छवि के लिए खतरा

इस फिल्म के खिलाफ जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने आवाज़ उठाई है. उनका कहना है कि ये फिल्म समाज में नफरत फैलाने का काम कर सकती है और दुनिया के सामने भारत की छवि को भी नुकसान पहुंचा सकती है.

इस फिल्म के खिलाफ जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने आवाज़ उठाई है. उनका कहना है कि ये फिल्म समाज में नफरत फैलाने का काम कर सकती है और दुनिया के सामने भारत की छवि को भी नुकसान पहुंचा सकती है.

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Mohit Sharma
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Arshad Madani

Arshad Madani Photograph: (सोशल मीडिया)

फिल्में कभी लोगों को जोड़ने का काम करती थीं, अब कई बार उन्हें बांटने का कारण भी बन जाती हैं. ऐसी ही एक नई फिल्म है - उदयपुर फाइल्स , जिसे लेकर देश में विवाद खड़ा हो गया है.

 क्या है मामला? 

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इस फिल्म के खिलाफ जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने आवाज़ उठाई है. उनका कहना है कि ये फिल्म समाज में नफरत फैलाने का काम कर सकती है और दुनिया के सामने भारत की छवि को भी नुकसान पहुंचा सकती है.

उन्होंने इस मुद्दे को पहले दिल्ली हाईकोर्ट में उठाया था. कोर्ट ने फिल्म पर तुरंत फैसला देने की बजाय, सरकार को कहा कि वह इस पर दोबारा विचार करे. अब मौलाना मदनी ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय में अपील दी है कि फिल्म की स्क्रीनिंग पर रोक लगाई जाए.

 क्यों हो रहा है विरोध? 

मौलाना मदनी का कहना है कि इस फिल्म में कुछ ऐसे दृश्य और बातें हैं जो समाज में एक समुदाय के खिलाफ नफरत फैला सकती हैं. उन्होंने कहा कि भारत में हिन्दू और मुस्लिम सदियों से एक साथ रहते आए हैं, लेकिन ऐसी फिल्में इस भाईचारे को बिगाड़ सकती हैं.

इसके अलावा फिल्म में एक किरदार ऐसा भी दिखाया गया है जो लोगों को नूपुर शर्मा की याद दिलाता है. नूपुर शर्मा के एक पुराने बयान को लेकर देश और विदेशों में बहुत विरोध हुआ था. उस समय भारत को सफाई भी देनी पड़ी थी. मौलाना का मानना है कि इस फिल्म से फिर से वही माहौल बन सकता है.

 अब अगला कदम क्या है? 

फिल्म के निर्माता इस रोक से खुश नहीं हैं. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है. वहां भी यह मामला अब सुना जाएगा. मौलाना मदनी ने भी वहां कैविएट (एक तरह की पूर्व सूचना) दाखिल की है ताकि कोर्ट उनका पक्ष सुने बिना कोई फैसला न करे.

 सरकार के पास एक हफ्ते का समय है 

सूचना और प्रसारण मंत्रालय को एक हफ्ते में तय करना है कि फिल्म को दिखाने की इजाजत दी जाए या नहीं. तब तक यह फिल्म रिलीज़ नहीं हो सकेगी.

 नतीजा क्या होगा? 

यह अभी तय नहीं है कि फिल्म बैन होगी या नहीं, लेकिन इस विवाद ने एक बड़ी बहस खड़ी कर दी है - क्या आज़ादी के नाम पर कोई भी फिल्म बनाई जा सकती है? या फिर ऐसी आज़ादी पर भी कुछ जिम्मेदारी होनी चाहिए?

रिपोर्ट- सैयद उवैस अली 

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