(रिपोर्ट- सैय्यद आमिर हुसैन)
देशभर में वक़्फ़ कानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन की तैयारी की जा रही है. जमीयत उमला ए हिन्द पहले से ही सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कर रहा है. सवाल ये की क्या आने वाले कुछ समय में किसान बिल के विरोध में जैसे बॉर्डर को महीनों तक सील करना पड़ा था. क्या ठीक वैसे ही प्रदर्शन होंगे या सिर्फ कोर्ट से ही अपनी मांगों को रखकर वक़्फ़ पर मामला चलेगा. जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की है, जिसमें वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है.
याचिका में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 25, 26 और 300 (ए) का उल्लंघन बताते हुए इन संशोधनों को असंवैधानिक करार देकर रद्द करने की मांग की है. याचिका में जो सवाल उठाए गए हैं वो क्या हैं?
मौलिक अधिकारों का उल्लंघन
संशोधित अधिनियम वक्फ की परिभाषा और संरचना में परिवर्तन लाता है. आसान भाषा में समझें, अब कानून के अनुसार दानकर्ता को यह साबित करना होगा कि उन्होंने कम से कम पांच वर्षों तक इस्लाम का पालन किया है. यह एक अस्पष्ट और मनमाना अपेक्षा है, जो इस्लामी कानून पर आधारित नहीं है. नया कानून निर्वाचित वक्फ बोर्डों को भंग कर उनके स्थान पर सरकार द्वारा नियुक्त पदाधिकारियों को नियुक्त करता है, जिनमें गैर-मुस्लिम और इस्लामी न्यायशास्त्र का अपेक्षित ज्ञान न रखने वाले अधिकारी भी शामिल हैं.
नया वक़्फ़ कानून अनुच्छेद 26 समुदाय के अपने धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन के अधिकार का उल्लंघन करता है. इसके अलावा, संशोधन में बोर्ड के मुस्लिम सीईओ होने की आवश्यकता को हटा दिया गया है, जिससे सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व कमजोर हो जाएगा.
वक्फ संपत्तियों का अनुचित अधिग्रहण
अधिनियम की धारा 3D को जल्दबाजी और मनमाने ढंग से एएसआई संरक्षित स्मारकों के तहत सभी वक्फ संपत्तियों को शून्य घोषित करने के लिए पेश किया गया है चाहे उनका ऐतिहासिक धार्मिक महत्व कुछ भी हो ऐसे तमाम बिंदुओं पर जमात-ए-इस्लामी हिन्द ने सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला लिया है. हालाँकि इस कानून पर मुस्लिम पक्षों की मिली जुली राय है.