22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में हुए आतंकी हमले को लेकर एक नई और गंभीर जांच का दायरा तैयार हो रहा है. इस हमले के पीछे संभावित सैटेलाइट इंटेलिजेंस के इस्तेमाल ने सुरक्षा एजेंसियों को चौकन्ना कर दिया है. सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान की एक भू-डाटा कंपनी बिजनेस सिस्टम इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड (BSI) ने बीते दो महीनों में अमेरिकी सैटेलाइट इमेजिंग कंपनी Maxar Technologies से लगातार हाई-रेजोल्यूशन सैटेलाइट इमेजेस हासिल कीं. इन्हीं में से एक तस्वीर बार्यसरण घाटी की थी, जो हमले से लगभग 10 दिन पहले प्राप्त की गई थी.
तस्वीरों के जरिए आतंकियों को सुरक्षा बलों की तैनाती
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की तस्वीरों के जरिए आतंकियों को सुरक्षा बलों की तैनाती, मूवमेंट और संभावित प्रवेश मार्गों की सटीक जानकारी मिल सकती है. यह आशंका इसलिए भी गंभीर हो जाती है क्योंकि सैटेलाइट इंटेलिजेंस का ऐसा ही उपयोग भारत-चीन लद्दाख स्टैंडऑफ में भी सामने आ चुका है. साइबर और सैटेलाइट विशेषज्ञ पवन दुग्गल कहते हैं, "हाई-रेजोल्यूशन सैटेलाइट इमेजेस, भले ही लाइव न हों, लेकिन आतंकियों जैसे अनधिकृत तत्वों के हाथ लग जाएं तो इससे सुरक्षा बलों की रणनीति प्रभावित हो सकती है. हालांकि Maxar ने सफाई दी है कि उन्होंने कोई लाइव इमेजिंग नहीं दी, बल्कि अपने डाटाबेस से पूर्व में ली गई तस्वीरें उपलब्ध कराईं. लेकिन विशेषज्ञों का सवाल यह है कि क्या पहले से ली गई इमेजेस भी आतंकी हमले के लिए पर्याप्त नहीं हो सकतीं?
"ऑपरेशन सिंदूर"
रक्षा विश्लेषक टीपी त्यागी का कहना है, "सैटेलाइट इंटेलिजेंस अब आधुनिक युद्ध और आतंक की रणनीति का अहम हिस्सा बन चुकी है. BSI और Maxar का यह मामला इस बात का उदाहरण है कि कैसे संवेदनशील डाटा गैरराज्य तत्वों के हाथों में जा सकता है. इस पूरे मामले में BSI और इसके प्रमुख ओबौदुल्ला सैयद अब भारतीय जांच एजेंसियों के रडार पर हैं. जांच इस दिशा में आगे बढ़ रही है कि क्या यह डाटा जानबूझकर साझा किया गया या यह एक लापरवाही का मामला है. गौरतलब है कि इससे पहले भी "ऑपरेशन सिंदूर" के दौरान चीन की सैटेलाइट सहायता से पाकिस्तान एयर फोर्स को समर्थन मिलने की खबरें सामने आई थीं. ऐसे में विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि भविष्य में आतंकी हमलों के संचालन में सैटेलाइट टेक्नोलॉजी एक केंद्रीय भूमिका निभा सकती है.