अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ और विपक्ष दोनों ही अपनी तैयारियों में तेजी से जुटे हैं। दोनों तरफ से कई दलों से समझौता भी हो चुका है। पश्चिमी यूपी में नए सिरे से उभार मार रहे रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी की नजर इस बात पर है कि सियासी पलड़ा किधर भारी है। दिल्ली सर्विस बिल पर मतदान के दौरान राज्यसभा से दूरी बनाकर और विपक्ष के साथ होने का संदेश देकर उन्होंने इंडिया और एनडीए के लिए अलग अलग दरवाजे खोल रखे हैं।
अभी हाल में विधानसभा के सत्र के दौरान रालोद के विधायक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उनके आवास पर मिले। ऐसा पहली बार हुआ है जब रालोद विधायक एक साथ मुख्यमंत्री से मिले हैं। ऐसे में सियासी चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है। कहा जा रहा है कि राज्यसभा में दिल्ली बिल पर हुई वोटिंग में पहले रालोद प्रमुख जयंत चौधरी गायब रहे। अब विधायक सामूहिक रूप से मुख्यमंत्री से मिले। जयंत के पहले से ही भाजपा के साथ जाने की चर्चा तेज है। अब इन विधायकों का मिलना एक नई सियासी खिचड़ी की ओर संकेत कर रहा है। यह मुलाकात और जारी हुई तस्वीर ने नई चर्चा को जन्म दिया है।
जून में पटना में विपक्ष की पहली बैठक हुई तो वहां जयंत नहीं पहुंचे। लेकिन 17 जुलाई को बेंगलुरू में कांग्रेस की अगुआई में आयोजित दूसरी बैठक में पहुंच गए। सात अगस्त को राज्यसभा में दिल्ली सेवा बिल के दौरान जयंत चौधरी गायब रहे।
हालंकि रालोद के प्रवक्ता अनिल दुबे रालोद के एनडीए में जाने की बातों को अफवाह बता रहे हैं। मुख्यमंत्री से रालोद विधायकों का मिलना सूखा और बाढ़ से जूझ रहे किसानों की समस्याओं को लेकर मिलना बता रहे हैं। कहा कि रालोद ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ है।
बता दें कि पिछले दिनों जयंत चौधरी का एक ट्वीट चावल खाना हो तो खीर खाओ को सत्ताधारी दल के साथ हाथ मिलाने से जोड़कर देखा गया।
रालोद के अन्य एक वरिष्ठ नेता ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि जयंत चौधरी को अपनी पार्टी को मजबूत करना है। इसलिए वह अभी सियासी चीजें देख रहें हैं। वह पश्चिमी यूपी में अगली सरकार के विकल्प बनना चाहते हैं। इसी कारण सारे ऑप्शन खोल रखे हैं। 2022 के चुनाव में रालोद ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। जाट वोट में छोटे चौधरी की पकड़ मजबूत है। क्षेत्र में अपनी एक संघर्ष की पहचान है। इसलिए रालोद को केंद्र में मजबूत करने के लिए ठोस कदम उठाया जाएगा।
राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में जाट वोटों की काफी महत्वपूर्ण भूमिका है। अगर चुनावी आंकड़ों को देखें तो जाट पूरे उत्तर प्रदेश की कुल आबादी का करीब 1.5 से 2 फीसदी हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में उनकी जनसंख्या 18 फीसदी तक है।
पांडेय कहते हैं कि प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत संभाल रहे जयंत चौधरी से गठबंधन कर भाजपा यूपी के साथ पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के जाट वोटरों को रिझाने की फिराक में है। अभी भाजपा के पास जाटों का कोई ऐसा नेता नहीं जिसकी स्वीकारिता पूरे देश में हो। इस कारण भी उनका फोकस जयंत की तरफ है। लिहाजा पार्टी का एक बड़ा गुट उन्हे लेने के पक्ष में लगा हुआ है। अभी 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में रालोद ने आठ सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं, पश्चिमी यूपी की जाट बहुल सीटों पर भाजपा को नुकसान हुआ था। इसी तरह निकाय चुनाव के आंकड़े भी जाट बहुल इलाके में भाजपा को नुकसान हुआ।
प्रसून कहते हैं कि जयंत को अगर इंडिया गठबंधन में मन मुताबिक सीटें नहीं मिली तो वह राजग में शामिल होते हैं तो उन्हें केंद्र में जगह तो मिलेगी साथ ही उनके एक दो विधायक मंत्री बन सकते है। केंद्र और राज्य सरकार में भागीदारी भी मिल जायेगी। इसी कारण वह अभी पूरे पत्ते नहीं खोल रहे हैं।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि रालोद अभी 2024 के चुनाव के लिए पूरी तरह से पत्ते नहीं खोल रहा है। अभी वह इंडिया और एनडीए में जाने के नफा नुकसान देख रहे हैं। अभी हाल के घटनाक्रम पार्टी की रणनीति के तहत संदेश देने का प्रयास था। क्योंकि जयंत को लोकसभा में अपनी उपस्थित तो दर्ज कराने के साथ जाटों के बड़े नेता के तौर पर उभार पाने का प्रयास कर रहे हैं।
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Source : IANS