भारत ने दुश्मन के खिलाफ निगरानी और खुफिया निगहबानी के लिए तकनीक के क्षेत्र में नई छलांग लगाई है. देश की प्रमुख रक्षा संस्थान डीआरडीओ ने एक खास प्रकार के हवाई यान – स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप – का पहला सफल उड़ान परीक्षण किया. यह परीक्षण मध्य प्रदेश के श्योपुर में किया गया, और ये एयरशिप करीब 17 किलोमीटर ऊंचाई तक उड़ान भरने में सफल रहा. यह एयरशिप आगरा स्थित एरियल डिलीवरी रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टैब्लिशमेंट ने तैयार किया है. उड़ान के दौरान इस यान के साथ कई वैज्ञानिक उपकरण भी भेजे गए, जिससे जरूरी डेटा इकट्ठा किया गया.
क्या है स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप?
स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप एक तरह का गुब्बारे जैसा हल्का हवाई यान है, जो धरती से बहुत ऊपर, 15 से 20 किलोमीटर की ऊंचाई पर उड़ सकता है. यह हवा में लंबे समय तक एक ही जगह स्थिर रह सकता है, और इसमें कैमरे, सेंसर्स और संचार उपकरण लगाए जा सकते हैं.
इसकी खासियत क्या है?
- लंबे समय तक हवा में रह सकता है, जबकि आम ड्रोन या विमान ऐसा नहीं कर सकते.
- बहुत ऊंचाई से बड़े इलाके की निगरानी कर सकता है.
- इसमें लगे सेंसर्स और कैमरों से सैटेलाइट जैसी जानकारी मिल सकती है, लेकिन कम खर्च में.
- इसकी मदद से दूरदराज़ इलाकों में संचार नेटवर्क भी पहुंचाया जा सकता है.
- यह सिस्टम आपदा के समय राहत कार्यों में भी मददगार हो सकता है.
भारत के लिए इसका सामरिक महत्व क्या है?
भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण भूगोल वाले देश के लिए इस तरह की तकनीक सीमा सुरक्षा, आतंकवाद पर नजर, और दुर्गम इलाकों में लगातार निगरानी रखने के लिए बहुत अहम है. जम्मू कश्मीर में आतंकी घुसपैठ पर पैनी नज़र रखने में यह काफी मददगार साबित हो सकता है वहीं लेह लद्दाख से लेकर अरुणाचल की पहाड़ियों पर यह चीनी चालबाजी से आगाह कर सकता है. इस उड़ान में करीब 62 मिनट तक एयरशिप हवा में रहा. इससे मिले डेटा से भविष्य में और बेहतर एयरशिप बनाए जाएंगे, जो अधिक ऊंचाई पर, लंबे समय तक, और ज्यादा सटीकता के साथ काम कर सकें.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने डीआरडीओ को बधाई देते हुए कहा कि यह प्रणाली भारत की खुफिया और निगरानी क्षमताओं को कई गुना बढ़ा देगी, और देश को तकनीक के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाएगी. डीआरडीओ प्रमुख डॉ. समीर वी. कामत ने भी इसे “भविष्य की निगरानी प्रणाली की दिशा में बड़ा कदम” बताया. साफ है कि यह उड़ान सिर्फ तकनीकी परीक्षण नहीं थी, बल्कि भारत की रक्षा और वैज्ञानिक क्षमता का एक नया अध्याय है. अब भारत खुद की बनाई ऐसी निगरानी तकनीक से अंतरिक्ष और आसमान दोनों में अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है.