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प्रेसिडेंट व्लादिमीर पुतिन और पीएम नरेंद्र मोदी Photograph: (SM)
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रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोप समेत पूरी दुनिया की तस्वीर बदल गई. युद्ध का असर ऐसा हुआ कि व्यापार ने भी एक अलग दिशा में रुख मोड़ लिया. भारत, जो कभी रूस से लगभग न के बराबर तेल खरीदता था, अब चीन के बाद सबसे ज्यादा तेल रूस से खरीदता है.
प्रेसिडेंट व्लादिमीर पुतिन और पीएम नरेंद्र मोदी Photograph: (SM)
साल 2022 में यूक्रेन युद्ध ने न सिर्फ यूरोप की सुरक्षा तस्वीर बदली, बल्कि वैश्विक तेल व्यापार की दिशा भी बदल दी. भारत, जो पहले रूस से लगभग तेल नहीं खरीदता था, अब उसे अपना सबसे बड़ा सप्लायर बना गया है. इससे भारत को सस्ती ऊर्जा मिली और घरेलू पेट्रोल-डीजल के दाम स्थिर रहे.
लेकिन अब यह रणनीति दबाव में है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय सामान पर टैरिफ 50% तक बढ़ा दिए हैं और इसे सीधे भारत की रूसी तेल खरीद से जोड़ा है. इसके साथ ही व्हाइट हाउस सेकेंडरी सैंक्शंस पर भी विचार कर रहा है, जो भारतीय रिफाइनरी, शिपिंग और बैंकों पर असर डाल सकते हैं.
साल 2021 में भारत के कुल कच्चे तेल आयात में रूसी तेल की हिस्सेदारी सिर्फ 2% थी. 2025 के मिडिल तक यह 35-40% तक पहुंच गई, यानी रोजाना 1.7–2 मिलियन बैरल भारत तेल ले रहा है. जून 2025 में यह 44% पर पहुंचकर 2.08 मिलियन बैरल प्रतिदिन हो गया. 2021 से 2024 के बीच भारत की रूसी तेल खरीद 19 गुना बढ़ी, जिससे देश को करीब 33 अरब डॉलर की बचत हुई.
बता दें कि भारत तुरंत सप्लायर नहीं बदल सकता क्योंकि रिफाइनरी खास ग्रेड के कच्चे तेल के हिसाब से बनी होती हैं. अगर रूसी सप्लाई बंद हुई तो भारत को मिडिल ईस्ट, वेस्ट अफ्रीका या अमेरिका से समान ग्रेड के लिए प्रतिस्पर्धा करनी होगी, जिससे कीमतें बढ़ेंगी, शिपिंग खर्च बढ़ेगा और डीजल की कमी हो सकती है.
भारत सिर्फ तेल आयातक नहीं, बल्कि बड़ा रिफाइनिंग हब भी है. वह रूसी तेल को प्रोसेस कर एशिया, अफ्रीका और यूरोप को पेट्रोल-डीजल भेजता है. 2023-24 में यूरोप के डीजल आयात का 15% भारत से गया. अगर भारत की रूसी खरीद घटी, तो वैश्विक डीजल बाजार तंग हो जाएगा और इसका असर ट्रांसपोर्ट में देखने को मिलेगा.
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