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आवारा कुत्तों का आतंक Photograph: (META AI)
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों का धड़पकड़ शुरू हो गए हैं. कोर्ट के आदेश के बाद देशभर के कुत्ता प्रेमियों ने इसका विरोध किया है. कई संगठनों ने कोर्ट के फैसले पर नाराजगी जताई है. ऐसे में सवाल यह है कि क्या देश में आवारा कुत्ते समस्या हैं?
2024 में 37 लाख मामले हुए दर्ज
सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, साल 2022 में देशभर में रैबीज से सिर्फ 21 मौतें दर्ज की गईं, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना है कि उसी साल असल मौतें 305 थीं. WHO के मॉडल अनुमान बताते हैं कि भारत में हर साल 18,000 से 20,000 लोग रैबीज की वजह से मरते हैं. यह संख्या दुनिया में रैबीज से होने वाली कुल मौतों का लगभग 36% है.
चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें ज्यादातर पीड़ित 15 साल से कम उम्र के बच्चे होते हैं. कोविड महामारी के दौरान कुत्तों के काटने के मामलों में गिरावट आई थी. 2018 में जहां 75.7 लाख मामले दर्ज हुए थे, वहीं 2021 में यह संख्या घटकर 17 लाख रह गई. लेकिन इसके बाद फिर तेज उछाल आया और 2024 में यह आंकड़ा 37 लाख से ऊपर पहुंच गया.
उत्तर प्रदेश में सबेस अधिक अवारा कुत्ते
अगर राज्यवार आंकड़े देखें तो महाराष्ट्र 13.5 लाख मामलों के साथ सबसे ऊपर है. इसके बाद तमिलनाडु 12.9 लाख और गुजरात 8.4 लाख मामलों के साथ दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं. वहीं आवारा कुत्तों की जनगणना (2019) के अनुसार उत्तर प्रदेश 20.6 लाख आवारा कुत्तों के साथ पहले स्थान पर है. इसके बाद ओडिशा 17.3 लाख, और महाराष्ट्र व राजस्थान 12.8–12.8 लाख आवारा कुत्तों के साथ आगे हैं.
सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं
विशेषज्ञों का मानना है कि यह संकट केवल प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा नहीं है. आवारा कुत्तों को खुला छोड़ना, समय पर नसबंदी और टीकाकरण न कराना, और डॉग लव के नाम पर उन्हें सड़कों पर पलने देना. ये सब मिलकर समस्या को बढ़ा रहे हैं. अगर हर साल 18-20 हजार लोग रैबीज से मर रहे हैं तो यह जिम्मेदारी सिर्फ सरकार पर नहीं, बल्कि समाज और खासकर उन लोगों पर भी है जो आवारा कुत्तों की समस्या को नजरअंदाज करते हैं.
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