5 हजार साल पहले हरदोई में पहली बार खेली गई होली, होलिका के जलने के बाद शुरू हुआ प्रचलन

हिरण्यकश्यप की राजधानी जिसे पहले हरिद्रोही कहा जाता था, यह अब हरदोई के नाम से जानी जाती है.

हिरण्यकश्यप की राजधानी जिसे पहले हरिद्रोही कहा जाता था, यह अब हरदोई के नाम से जानी जाती है.

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Mohit Saxena
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holi Photograph: (social media)

रंगों के पर्व होली के त्यौहार को आने में अब कुछ दिन शेष हैं. लोग होली की तैयारी में जुट गए हैं. इस बार  की होली को लेकर भले ही कई दिन की भ्रंतिया हैं और अलग अलग स्थानों पर भले ही अलग अलग दिन  मनाया जाएगा, लेकिन होली की शुरुआत करीब 5 हजार साल पहले हरदोई से हुई थी. हिरण्यकश्यप की राजधानी जिसे हरिद्रोही कहा जाता था जो अब हरदोई के नाम से जानी जाती है. यहीं होलिका जली थी, जिसके बाद उसकी राख से प्रह्लाद ने होली खेली थी. तभी से होली की शुरुआत हुई है.

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भगवान विष्णु की भक्ति में अपना जीवन समर्पित किया

होली की शुरुआत इस शहर से हुई थी. यहां करीब 5000 साल से भी पुराना नृसिंह भगवान मंदिर, प्रहलाद घाट, हिरण्यकश्यप के महल का खंडहर आज भी इसकी गवाही दे रहा है. पुराणों में वर्णन है कि हिरण्यकश्यप भगवान को अपना शत्रु मानता था. द्रोही मानता था इसीलिए हरदोई जिले का पुराना नाम हरिद्रोही था. यह हिरण्यकश्यप  की राजधानी थी. पौराणिक कथाओं के अनुसार हिरण्यकश्यप ने भगवान विष्णु के अनन्य भक्त और हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद के खिलाफ कई जुल्म किए थे और बदला लेने के लिए उसने कई साज‍िशें रचीं थीं, लेकिन हिरण्यकश्यप के बेटे प्रहलाद ने भगवान विष्णु की भक्ति में अपना जीवन समर्पित किया.  

कई बार प्रहलाद को मारने की कोशिश की

उसके पिता को ये बिल्कुल पसंद नहीं आता था. हिरण्यकश्यप ने कई बार प्रहलाद को मारने की कोशिश की, लेकिन भगवान की कृपा से वह हर बार बच जाता था. जब उसके सभी उपाय फेल हो गए तो एक दिन हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से प्रहलाद को मारने के लिए कहा क्योंकि होलिका को भगवान से यह वरदान प्राप्त था कि जब वह आग में बैठती थी, तो वह जलती नहीं थी. ऐसे में होलिका ने प्रहलाद को अपनी गोदी में लेकर आग में बैठ गयी लेकिन भगवान विष्णु की माया से होलिका जलकर भस्म हो गई. वहीं प्रहलाद बच गए. उसी समय हरदोई के लोग इस घटना के बाद बहुत खुश हुए उस जली हुई चिता की राख को उड़ाया और एक-दूसरे को लगाकर खुशी मनाई. तभी से होली का त्योहार मनाने की परंपरा शुरू हुई.

हिरण्यकश्यप के महल के खंडहर और प्रहलाद घाट मौजूद

हरदोई में भगवान ने एक बार बावन अवतार भी लिया था. हिरण्यकश्यप ने हरदोई में र अक्षर के उच्चारण पर पाबंदी थी. हिरण्यकश्यप के र शब्द के उच्चारण पर रोक लगाने का प्रभाव आज भी यहां के लोगों की जुबान पर साफ देखने को मिलता है. हरदोई में आज भी हिरण्यकश्यप के महल के खंडहर और प्रहलाद घाट मौजूद हैं, जो इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी हैं. होली की शुरुआत हरदोई से होने की बात धार्मिक ग्रंथों और हरदोई गजेटियर में भी है. हालांकि नगर पालिका की उपेक्षा के कारण प्रह्लाद घाट कुंड दुर्दशा का आज शिकार भी है   जो अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. इसी कुंड से सटा हुआ श्रवण देवी मंदिर शक्ति पीठ है. यह एक पौराणिक मन्दिर है. 

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