उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा को कथित तौर पर रोहिणी जेल से एक संगठित अपराध सिंडिकेट चलाने की अनुमति देने के मामले में आठ जेल अधिकारियों की भूमिका की जांच करने की अनुमति दे दी है।
भ्रष्टाचार निवारण (पीओसी) अधिनियम की धारा 17ए के तहत जेल अधिकारियों की भूमिका की जांच की जाएगी।
अधिकारियों के अनुसार, “पहले से ही गिरफ्तार दिल्ली की जेलों के इन आठ ग्रुप बी अधिकारियों/कर्मचारियों की जांच के लिए एलजी की मंजूरी मिल गई है। एलजी ने पिछले साल सुकेश की मदद करने वाले 81 अन्य जेल अधिकारियों की भूमिका की जांच करने अनुमति दी थी।
ईओडब्ल्यू की नजर में जेल अधिकारी सुनील कुमार, सुंदर बोरा (दोनों अधीक्षक), प्रकाश चंद, महेंद्र प्रसाद सुंदरियाल, सुभाष बत्रा (सभी उपाधीक्षक), धर्म सिंह मीणा, लक्ष्मी दत्त और प्रकाश चंद (सभी सहायक अधीक्षक) हैं।
उन्हें ठग द्वारा संचालित संगठित अपराध सिंडिकेट को सुविधा देने के आरोप में मकोका के प्रावधानों के तहत गिरफ्तार किया गया था।
जांचकर्ताओं ने कहा है कि सुकेश चंद्रशेखर मोबाइल फोन और अलग बैरक जैसी सुविधाओं के लिए हर महीने लगभग 1.50 करोड़ रुपये का भुगतान करते थे।
अधिकारी ने कहा, “चंद्रशेखर बैरक नंबर 204, वार्ड नंबर 3, जेल नंबर 10, रोहिणी से काम कर रहा था और जांच के दौरान यह सामने आया कि ये आठ जेल अधिकारी उसके रहने को आरामदायक बना रहे थे और गोपनीयता सुनिश्चित कर रहे थे, ताकि वह जेल में मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर सके।”
रोहिणी जेल के विभिन्न कैमरों के फुटेज एकत्र किए गए और उनका विश्लेषण किया गया और उक्त कर्मचारियों के ड्यूटी रोस्टर की जांच की गई। उनके फोन विवरण का विश्लेषण किया गया और आरोपी पुरुषों के खुलासे के आधार पर जानकारी एकत्र की गई।
अधिकारी ने कहा, “यह पाया गया कि उक्त कर्मचारी को सुकेश चंद्रशेखर के परामर्श से उसके बैरक में तैनात किया गया था, ताकि उसे आर्थिक लाभ के लिए उसकी आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने में मदद मिल सके।”
सहायक अधीक्षक धर्म सिंह मीणा के माध्यम से नियमित आधार पर प्राप्त होने वाले आर्थिक लाभ के लिए इन जेल अधिकारियों द्वारा जेल मैनुअल का घोर उल्लंघन करते हुए सुकेश चंद्रशेखर को विशेष रूप से एक अलग बैरक में रखा गया था।
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Source : IANS