कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने शनिवार को कहा कि लंबवत जाति व्यवस्था को खत्म करके एक क्षैतिज समाज की स्थापना करना बसवदी शरणों की आकांक्षा थी। उन्होंने कहा कि उनकी भी यही आकांक्षा है।
मुख्यमंत्री ने मैसूर कलामंदिर में अखिल भारत वीरशैव लिंगायत महासभा, वीरशैव-लिंगायत संघ और मैसूर फेडरेशन ऑफ बसवा बालागास द्वारा आयोजित बसव जयंती कार्यक्रम का उद्घाटन करने के बाद यह बात कही।
उन्होंने कहा, बसवदी शरणों ने शूद्र समुदायों के बीच जागरूकता पैदा की। अल्लामा प्रभु, जो वंचित वर्ग से थे, अनुभव मंतपा के अध्यक्ष थे। इस प्रकार, बसवदी शरण 12वीं शताब्दी में ही लोकतांत्रिक प्रणाली को लागू करने में सक्षम थे। बसवन्ना ने उस दौरान कई अंतरजातीय विवाह करवाए थे। यही कारण था कि बिज्जला को बसवन्ना के खिलाफ खड़ा किया गया था।
कर्नाटक के सीएम ने कहा कि 12वीं सदी के शरणाओं की आकांक्षाएं अभी भी पूरी नहीं हुई हैं।
सीएम ने कहा, आजादी के 76 साल बाद भी लोकतंत्र और संविधान की आकांक्षाएं पूरी नहीं हुई हैं और समाज में असमानता अभी भी कायम है।
उन्होंने कहा, बीआर अंबेडकर ने संविधान लागू किए जाने के दौरान इस संभावना के बारे में चेतावनी दी थी। यही चेतावनी बसवन्ना और बसवदी शरणों ने भी 12वीं शताब्दी में ही दी थी।
सीएम ने कहा, समाज को जातियों के आधार पर विभाजित नहीं किया जाना चाहिए। हमें विश्व मानव बनना चाहिए। यह बासवन्ना की इच्छा थी कि एक पदानुक्रमित समाज होना चाहिए और एक क्षैतिज समाज अस्तित्व में होना चाहिए।
मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने आश्वासन दिया कि वीरशैव-लिंगायत समुदाय द्वारा रखी गई मांगों पर अगले बजट में विचार किया जाएगा।
उन्होंने कहा, मैं ईमानदारी से बसवदी शरणों के मार्ग पर चलने की कोशिश कर रहा हूं। शरणों ने जो उपदेश दिया, उसका पालन किया। मैं वादे के अनुसार अपनी प्रतिज्ञा भी पूरी कर रहा हूं।
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Source : IANS