केरल उच्च न्यायालय ने 14 वर्षीय बलात्कार पीड़िता के गर्भावस्था के 30वें सप्ताह में गर्भपात की उसकी माँ की याचिका खारिज कर दी है।
जस्टिस देवन रामचंद्रन ने मेडिकल बोर्ड की राय देखने के बाद कहा कि अब गर्भपात संभव नहीं है और इस स्तर पर बच्चे को जीवित जन्म देना होगा।
अदालत ने कहा, अप्रिय रूप से, यह ऐसा मामला नहीं है जहां गर्भावस्था के कारण पीड़ित बच्चे के स्वास्थ्य को कोई खतरा है; न ही भ्रूण में कोई घातक असामान्यताएं पाई गई हैं। गर्भावस्था लगभग 9वें महीने में है और भ्रूण का वजन और वसा बढ़ कर जऩ्म के समय के अंतिम वजन के करीब आ रहा है। इसके महत्वपूर्ण अंग, जैसे मस्तिष्क और फेफड़े, लगभग पूरी तरह से विकसित हो चुके हैं और गर्भ के बाहर जीवन की तैयारी कर रहे हैं।
अदालत ने स्पष्ट किया, इसमें कोई संदेह नहीं है कि बच्ची अभी भी बहुत छोटी है - केवल 13 से 14 साल की उम्र में, और उसके साथ जो हुआ वह निश्चित रूप से वैधानिक बलात्कार है।
हालाँकि, न्यायाधीश ने यह स्पष्ट कर दिया कि ये टिप्पणियाँ केवल वर्तमान मामले के संदर्भ में की गई हैं और इसे आरोपी के पक्ष में नहीं समझा जाना चाहिए, जो यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पोक्सो अधिनियम) के तहत कार्यवाही का सामना कर रहा है।
न्यायाधीश ने पीड़ित बच्ची के गर्भपात की अनुमति को अस्वीकार कर दिया क्योंकि गर्भावस्था अंतिम चरण में है।
अदालत ने कहा, यह न्यायालय पहले की तरह केवल एक ही कारण से कह रहा है, अर्थात् गर्भावस्था अब बहुत आगे बढ़ चुकी है। मेडिकल बोर्ड ने सर्वसम्मति से कहा कि गर्भाशय अच्छे भ्रूण के दिल के साथ 30 सप्ताह के गर्भ के अनुरूप है। भ्रूण, वास्तव में, हृदय गति के साथ जीवन जी रहा है; और इसलिए, इस चरण में गर्भावस्था को समाप्त करना असंभव है, और साथ ही अस्थिर भी है।
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि इस मामले में गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के प्रावधानों को लागू नहीं किया जा सकता। हालांकि, कोर्ट ने याचिकाकर्ता को आश्वासन दिया कि उनकी बेटी को कानूनी सुरक्षा मिलेगी।
इन टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने बाल संरक्षण अधिकारी को याचिकाकर्ता और उसके परिवार को नियमित सहायता प्रदान करने का निर्देश देते हुए याचिका बंद कर दी।
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Source : IANS