भारत ने संयुक्त राष्ट्र के मंच पर चर्चा में कश्मीर को शामिल करने के पाकिस्तान के प्रयास की जमकर आलोचना की है।
भारत के संयुक्त राष्ट्र मिशन के मंत्री प्रतीक माथुर ने पाकिस्तान द्वारा कश्मीर मुद्दे को उठाने पर कहा कि उसने “इस मंच का दुरुपयोग निराधार और कपटपूर्ण बयानबाजी करने के लिए किया है, जो कोई आश्चर्य की बात नहीं है।”
उन्होंने तीखे स्वर में कहा, “मैं इस प्रतिष्ठित संस्था का कीमती समय बचाने के लिए इन टिप्पणियों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दूंगा।”
माथुर ने अपने बयान में पाकिस्तान का नाम भी नहीं लिया। चूंकि भारत ने पाकिस्तान का नाम नहीं लिया गया, इसलिए पाकिस्तान को जवाब देने का अधिकार नहीं मिला।
कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में चर्चा का विषय नहीं था, इसलिए पाकिस्तान के स्थायी प्रतिनिधि मुनीर अकरम इसे बार-बार फिलिस्तीन से जोड़ने की कोशिश कर रहे थे। मंगलवार को भी उन्होंने ऐसा ही किया, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ।
पिछले साल संयुक्त राष्ट्र महासभा की एक बैठक में पाकिस्तान के अलावा केवल एक ही देश ने कश्मीर का उल्लेख किया था। बाकी के 191 देशों ने इसे अनदेखा कर दिया था।
यहां तक कि तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने भी इस पर एक हल्की टिप्पणी की थी। उन्होंने केवल इतना कहा था कि भारत और पाकिस्तान द्वारा बातचीत के माध्यम से विवाद को हल करने से दक्षिण एशिया में शांति, स्थिरता और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होगा।
पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने भी माना था कि इस्लामाबाद संयुक्त राष्ट्र में अपने मुद्दे के लिए समर्थन नहीं जुटा पा रहा है।
पिछले साल एक समाचार सम्मेलन में उन्होंने कहा था, संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर को एजेंडे में लाने के लिए हमें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
भारत का कहना है कि कश्मीर का मुद्दा और दूसरे सभी विवाद दोनों देशों के बीच हुए 1972 के शिमला समझौते के तहत द्विपक्षीय मामले हैं, जिस पर बिलावल के दादा जुल्फिकार अली भुट्टो, जो उस समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे, और भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हस्ताक्षर किए थे।
इसके अलावा, कश्मीर में जनमत संग्रह के लिए सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव पर इस्लामाबाद एक महत्वपूर्ण बात की अनदेखी करता है कि उसे पहले कश्मीर के सभी क्षेत्रों से हटना होगा, जिस पर उसने कब्जा कर रखा है।
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Source : IANS