भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह ने सोमवार को छह महिला पहलवानों द्वारा उनके खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामले की सुनवाई कर रही दिल्ली की एक अदालत के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाया और दावा किया कि ऐसा कुछ भी भारत में नहीं हुआ।
सिंह के वकील राजीव मोहन ने अदालत के समक्ष दलील दी, जो आरोप लगाए गए हैं, वैसा कुछ भारत में नहीं हुआ है और इसलिए टोक्यो, मंगोलिया, बुल्गारिया, जकार्ता, कजाकिस्तान, तुर्की आदि में हुए कथित अपराधों की सुनवाई इस अदालत में नहीं की जा सकती।
अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट हरजीत सिंह जसपाल इस बात पर दलीलें सुन रहे थे कि बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आरोप तय किए जाएं या नहीं।
सिंह ने तर्क दिया कि इस अदालत के पास कथित तौर पर भारत के बाहर किए गए किसी भी अपराध की सुनवाई करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।
हालांकि, लोक अभियोजक (पीपी) अतुल कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि पीड़िताओं का कहना है कि उनका यौन उत्पीड़न लगातार किया जाता रहा है और यह ऐसा अपराध है, जिसमें कोई विशेष समय या स्थान मायने नहीं रखता।
उन्होंने कहा, “आरोपी को जब भी मौका मिला, उसने पीड़िताओं से छेड़छाड़ की और इस तरह के उत्पीड़न को अलग-अलग कोष्ठक में नहीं देखा जा सकता और ऐसी घटनाओं की श्रृंखला को समेकित रूप में देखा जाना चाहिए।”
मामले की संक्षिप्त सुनवाई के बाद न्यायाधीश ने वकीलों को अपनी लिखित दलीलें दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया।
न्यायाधीश ने इस बात पर भी जोर दिया कि दलीलें व्यवस्थित तरीके से पेश की जाएं। उन्होंने मामले की अगली सुनवाई 22 नवंबर को होनी तय कर दी।
सिंह ने पिछली बार अपने खिलाफ गवाहों के बयानों में भौतिक विरोधाभास का दावा करते हुए अदालत से उन्हें आरोपमुक्त करने का आग्रह किया था।
सिंह की ओर से पेश वकील मोहन ने दलील दी थी कि कानून के मुताबिक ओवरसाइट कमेटी को सात दिनों के भीतर एफआईआर दर्ज करने की सिफारिश करनी थी, लेकिन चूंकि मौजूदा मामले में ऐसी कोई सिफारिश नहीं की गई है, इसलिए यह मान लेना सुरक्षित है समिति को प्रथम दृष्टया आरोपी के खिलाफ कोई मामला नहीं मिला।
मोहन ने अदालत को से कहा था, चूंकि ओवरसाइट कमेटी ने प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं पाया, इसलिए उस समय एफआईआर दर्ज नहीं की गई थी, यह स्वत: दोषमुक्ति के बराबर है।
उन्होंने आगे दावा किया था कि ओवरसाइट कमेटी के समक्ष दिए गए बयानों और सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज किए गए बयानों में भौतिक विरोधाभास हैं और बाद में दिए गए बयानों (धारा 164 के तहत) में भौतिक सुधार हुए हैं और इसलिए उन्हें पूरी तरह से खारिज कर दिया जाए।
बचाव पक्ष के वकील ने कहा, चूंकि अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों में भौतिक विरोधाभास हैं, इसलिए यह खुद ही आरोपी को आरोपमुक्त करने की मांग करता है।
लोक अभियोजक ने इस तर्क का विरोध किया था और कहा था कि जब ओवरसाइट कमेटी का गठन ही कानून के अनुरूप नहीं किया गया था, तब उसकी आड़ लेकर बचाव नहीं किया जा सकता।
अभियोजक ने कहा था, दोषमुक्ति का कोई सवाल ही नहीं है, क्योंकि उस समिति ने कोई निष्कर्ष नहीं दिया है।
दिल्ली पुलिस ने अदालत को यह भी बताया है कि सिंह ने महिला पहलवानों का यौन उत्पीड़न करने का कोई मौका नहीं छोड़ा, साथ ही कहा कि उसके खिलाफ आरोप तय करने और मुकदमे को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं।
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Source : IANS