डिटेंशन कैंप असम में कई व्यक्तियों के लिए एक डरावना सपना है, जिन्हें न्यायाधिकरणों द्वारा विदेशी घोषित किया गया था, लेकिन उनमें से कई बाद में अदालतों में या विदेशी न्यायाधिकरण में अपील करके अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने में सफल रहे।
ऐसे बहुत से मामले थे जिनमें न्यायाधिकरणों के सदस्यों द्वारा अभियुक्तों की गवाही सुने बिना ही फैसला पारित कर दिया गया क्योंकि वे सुनवाई के दौरान अनुपस्थित रहते थे।
गुवाहटी हाईकोर्ट के एक वरिष्ठ वकील ने आईएएनएस को बताया, हमने कई बार देखा है कि एक संबंधित व्यक्ति जिस पर अवैध विदेशी होने का आरोप लगाया गया था, उसे विदेशी न्यायाधिकरणों में उसकी सुनवाई की तारीखों के बारे में जानकारी नहीं होती है। इसीलिए वे सुनवाई प्रक्रिया के दौरान अनुपस्थित रहते हैं और बाद में न्यायाधिकरणों द्वारा उन्हें अवैध विदेशी घोषित कर दिया जाता है।
असम के कछार जिले के कटिगोराह क्षेत्र की निवासी अहल्या रानी दास को 2018 में सिलचर के ट्रिब्यूनल नंबर 4 द्वारा एकतरफा विदेशी घोषित किया गया था। इस राय को चुनौती देते हुए दास ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
हाईकोर्ट के जस्टिस मानस रंजन पाठक और पार्थ ज्योति सैकिया की पीठ ने अंतरिम आदेश में कहा कि अहल्या रानी दास को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकती और न ही उसे निर्वासित कर डिटेंशन कैंप में धकेला जा सकता है, लेकिन उसे कछार के पुलिस अधीक्षक (सीमा) के सामने पेश होना होगा।
कोर्ट के आदेश के मुताबिक संबंधित पुलिस अधीक्षक (एसपी) को आरोपी की बायोमेट्रिक जानकारी लेनी होगी। हाईकोर्ट के आदेश के आलोक में अहल्या रानी दास को कुछ राहत मिली है।
गोलपाड़ा जिले के दुधनाई निवासी निरपेन दास को गोलपाड़ा के ट्रिब्यूनल नंबर 4 द्वारा 2022 में विदेशी घोषित किया गया था। इस आदेश को चुनौती देते हुए दास ने गुवाहटी हाईकोर्ट में एक रिट याचिका (डब्ल्यूपीसी 1447/2023) दायर की।
हाईकोर्ट द्वारा हाल ही में पारित एक आदेश में कहा गया है कि निरपेन दास को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है या हिरासत शिविर (डिटेंशन कैंप) में नहीं भेजा जा सकता है, हालांकि उन्हें गोलपाड़ा के एसपी (सीमा) के सामने पेश होना होगा और बायोमेट्रिक जानकारी प्रदान करनी होगी।
मोरीगांव जिले के जागीरोड के एक ही परिवार के सात लोगों को ट्रिब्यूनल ने विदेशी घोषित कर दिया था। मोरीगांव के ट्रिब्यूनल नंबर 1 के आदेश में रायचंद दास, सुप्रभा दास, रामजॉय दास, संजय दास, गोपींद्र दास, संजीत दास और विश्वजीत दास को विदेशी घोषित किया गया था।
ट्रिब्यूनल की राय को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर की गई थी। लेकिन कुछ दिनों बाद रायचंद दास की मौत हो गई। उनके आवेदन में कहा गया है कि वह धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होने के बाद 1964 में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से भारत आए थे। उन्होंने गोलपाड़ा राहत शिविर में रहने का सबूत भी पेश किया था।
डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.
Source : IANS