Advertisment

फेफड़ों की बीमारी में अधिक जोखिम बढ़ा सकता है जलवायु परिवर्तन : रिपोर्ट

फेफड़ों की बीमारी में अधिक जोखिम बढ़ा सकता है जलवायु परिवर्तन : रिपोर्ट

author-image
IANS
New Update
hindi-climate-change-can-add-more-rik-for-kid-adult-with-lung-condition--20230904113605-202309041254

(source : IANS)( Photo Credit : (source : IANS))

Advertisment

एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि अस्थमा और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) जैसी फेफड़ों की समस्याओं से पीड़ित बच्चों और वयस्कों को जलवायु परिवर्तन से और अधिक खतरा हो सकता है।

यूरोपियन रेस्पिरेटरी जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट इस बात का सबूत पेश करती है कि कैसे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव जैसे हीटवेव, जंगल की आग और बाढ़, दुनिया भर के लाखों लोगों, विशेषकर शिशुओं, छोटे बच्चों और बुजुर्गों के लिए सांस लेने में कठिनाई को और बढ़ा देंगे।

यूरोपीय रेस्पिरेटरी सोसाइटी के पर्यावरण और स्वास्थ्य समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर जोराना जोवानोविक एंडर्सन ने कहा, “जलवायु परिवर्तन हर किसी के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, लेकिन इससे श्वसन रोगी सबसे अधिक असुरक्षित हैं। ये वे लोग हैं जो पहले से ही सांस लेने में कठिनाई का अनुभव करते हैं, और वे हमारी बदलती जलवायु के प्रति कहीं अधिक संवेदनशील हैं। उनके लिए जलवायु परिवर्तन खतरनाक साबित होगा।

“वायु प्रदूषण पहले से ही हमारे फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रहा है। अब जलवायु परिवर्तन का असर सांस के मरीजों के लिए बड़ा खतरा बनता जा रहा है।

रिपोर्ट के अनुसार इन प्रभावों में वायुजनित एलर्जी में वृद्धि शामिल है। इनमें लू, सूखा और जंगल की आग जैसी घटनाएं भी शामिल हैं, जिससे अत्यधिक वायु प्रदूषण और धूल भरी आंधियां होती हैं। साथ ही भारी वर्षा और बाढ़ से घर में उच्च आर्द्रता और फफूंदी भी रोगियों के लिएखतरनाक है।

यह रिपोर्ट विशेष रूप से शिशुओं और बच्चों के लिए अतिरिक्त जोखिम पर प्रकाश डालती है, जिनके फेफड़े अभी भी विकसित हो रहे हैं।

इस वर्ष दुनिया भर में उच्च तापमान के नए रिकॉर्ड बने हैं। यूरोप में लू, विनाशकारी जंगल की आग, बारिश, तूफान और बाढ़ का अनुभव हुआ है।

प्रोफेसर एंडरसन ने कहा, श्वसन डॉक्टरों और नर्सों के रूप में हमें इन नए जोखिमों के बारे में जागरूक रहने और मरीजों की पीड़ा को कम करने में मदद करने की जरूरत है।

हमें अपने मरीजों को जोखिमों के बारे में भी समझाने की जरूरत है ताकि वे जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से खुद को बचा सकें।

प्रोफेसर एंडरसन ने कहा कि मौजूदा सीमाएं पुरानी हो चुकी हैं और दुनिया भर के लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा करने में विफल हैं।

उन्होंने स्वच्छ हवा और बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए महत्वाकांक्षी नए वायु गुणवत्ता मानकों का आह्वान किया।

प्रोफेसर एंडरसन ने कहा,“हम सभी को स्वच्छ, सुरक्षित हवा में सांस लेने की जरूरत है। इसका मतलब है कि हमें अपने ग्रह और हमारे स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए नीति निर्माताओं से कार्रवाई की आवश्यकता है।

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

Source : IANS

Advertisment
Advertisment
Advertisment