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सिरप केस Photograph: (Freepik)
मध्य प्रदेश में बच्चों की मौत के बाद सरकार अब दवा कंपनियों पर सख्त हो गई है. देश के शीर्ष दवा नियामक सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (CDSCO) ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के ड्रग कंट्रोलरों को कड़ा निर्देश जारी किया है कि किसी भी कफ सिरप या दवा के निर्माण से पहले हर बैच के कच्चे माल और तैयार दवा की लैब टेस्टिंग अनिवार्य रूप से की जाए.
7 अक्टूबर से आदेश हुआ जारी
यह आदेश 7 अक्टूबर 2025 को जारी किया गया, जिसे भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल डॉ. राजीव सिंह रघुवंशी ने भेजा. निर्देश में साफ कहा गया है कि हर फार्मा कंपनी को एक्टिव और इनएक्टिव इंग्रेडिएंट यानी एक्सिपिएंट्स की टेस्टिंग खुद की लैब या लाइसेंस प्राप्त लैब में करानी होगी.
जहर वाली सिरप से हो रही है मौत
दरअसल, हाल के वर्षों में भारत समेत कई देशों में कफ सिरप में जहर जैसे रासायनिक तत्व डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) और एथिलीन ग्लाइकॉल (EG) पाए गए हैं, जिनकी वजह से गाम्बिया, उज्बेकिस्तान, राजस्थान और जम्मू में बच्चों की मौतें हुईं. जांचों में पाया गया कि कंपनियों ने सिरप बनाने से पहले कच्चे माल की टेस्टिंग नहीं की थी.
क्या है डीसीजीआई एडवाइजरी?
DCGI की इस एडवाइजरी में कहा गया है कि निरीक्षणों के दौरान पाया गया कि कई निर्माता कंपनियां अब भी हर बैच की टेस्टिंग नहीं कर रहीं. यह सीधे-सीधे ड्रग्स रूल्स 1945 का उल्लंघन है, जिसमें हर बैच की जांच और रिकॉर्ड मेंटेन करना अनिवार्य है.
जारी निर्देश में क्या बताया गया?
पत्र में राज्यों को यह भी निर्देश दिया गया है कि निरीक्षण बढ़ाएं, कंपनियों की क्वालिटी कंट्रोल व्यवस्था की जांच करें और बिना टेस्टिंग के किसी दवा को बाजार में न आने दें। साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि सभी रिकॉर्ड और सैंपल की रिपोर्ट नियमानुसार रखी जाए.
इसलिए होते हैं यूज
गौरतलब है कि एक्सिपिएंट्स वे तत्व होते हैं जो दवा को स्वाद, स्थिरता और तरलता देते हैं, जैसे ग्लिसरीन, प्रोपिलीन ग्लाइकॉल और सोरबिटोल. ये खुद दवा नहीं होते लेकिन सुरक्षित दवा निर्माण के लिए बेहद जरूरी होते हैं.
मध्य प्रदेश में हालिया हादसे ने एक बार फिर भारत की दवा निर्माण प्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) पहले ही भारत को चेतावनी दे चुका है कि अगर निगरानी और जांच प्रणाली मजबूत नहीं की गई, तो ऐसे हादसे दोबारा हो सकते हैं. अब केंद्र का यह आदेश स्पष्ट संकेत देता है कि सरकार “फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड” की साख बचाने के लिए किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं करेगी.
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