दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश, जस्टिस यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास, 30 तुगलक क्रिसेंट, पर 14 मार्च की रात लगी आग ने अब एक नया मोड़ ले लिया है. इस घटना की जांच के लिए गठित तीन सदस्यीय पैनल ने अपनी 64 पन्नों की रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं, जिससे आग लगने के पीछे के कारणों और न्यायाधीश के स्टोर रूम से बरामद जले हुए नोटों पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं.
जांच रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
जले हुए नोट, बंद स्टोर रूम और सवालों के घेरे में नियंत्रण. जांच कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार, 30 तुगलक क्रिसेंट के स्टोर रूम से बड़ी मात्रा में जले हुए या आधे जले हुए नोट मिले हैं. पैनल ने 10 से ज्यादा गवाहों, जिनमें अग्निशमनकर्मी और पुलिसकर्मी शामिल थे के बयानों को रिकॉर्ड किया है. उन्होंने इन नोटों को देखे जाने की पुष्टि की. इन गवाहियों को घटनास्थल की स्थिर तस्वीरों और वीडियो जैसे इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों से भी बल मिला है.
रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि ये जले हुए नोट "अत्याधिक संदिग्ध" हैं और "न्यायमूर्ति वर्मा या उनके परिवार के सदस्यों की मौन या सक्रिय सहमति के बिना स्टोर रूम में नहीं रखे जा सकते थे." पैनल ने यह भी स्थापित किया है कि स्टोर रूम का नियंत्रण पूरी तरह से जस्टिस वर्मा और उनके परिवार के पास था. न्यायाधीश का यह दावा कि स्टोर रूम "सभी के लिए खुला" था, सुरक्षा कर्मियों के बयानों से खारिज हो गया, जिन्होंने स्पष्ट किया कि परिवार की अनुमति के बिना किसी बाहरी व्यक्ति को अंदर जाने की अनुमति नहीं थी.
यहां तक कि सुरक्षा ड्यूटी पर तैनात सीआरपीएफ कर्मियों ने पैनल को बताया कि आग लगने के समय स्टोर रूम का दरवाज़ा बंद था और उन्हें ताला तोड़ने में मदद करनी पड़ी थी, जो इस बात को और पुख्ता करता है कि यह जगह आम लोगों के लिए खुली नहीं थी.
जस्टिस वर्मा के स्पष्टीकरण और साजिश के दावों पर सवाल
जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया है कि एक बार जब यह साबित हो गया कि स्टोर रूम में जली हुई नकदी मिली थी, तो जस्टिस वर्मा पर इसका उचित स्पष्टीकरण देने की जिम्मेदारी आ गई थी. हालांकि, रिपोर्ट के अनुसार, वह ऐसा करने में विफल रहे और उन्होंने "साजिश की एक बेबुनियाद दलील" पेश करते हुए सीधे इनकार कर दिया. पैनल ने जस्टिस वर्मा के "अप्राकृतिक आचरण" पर भी टिप्पणी की. रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि कोई साजिश का सिद्धांत था, तो उन्होंने पुलिस अधिकारियों के पास कोई शिकायत क्यों नहीं दर्ज कराई या दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या भारत के मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में इस बात को क्यों नहीं लाया? इसके अलावा, आग लगने के समय भोपाल में होने के बावजूद, जस्टिस वर्मा ने घर लौटने के तुरंत बाद भी स्टोर हाउस का दौरा नहीं किया, जो उनके आचरण को और संदिग्ध बनाता है. इस हाई-प्रोफाइल मामले की जांच रिपोर्ट ने न्यायपालिका के एक मौजूदा न्यायाधीश से जुड़े कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.