एक पोस्टर...एक मौलवी और कई डॉक्टर्स, निशाने पर थे दिल्ली के कई ठिकाने!

19 अक्टूबर को श्रीनगर के नौगाम इलाके में भारत को दहलाने की धमकी भरे पोस्टर मिले. इसी पोस्टर ने सुरक्षा एजेंसियों को दिल्ली तक पहुंचाया, जिससे बड़ा खुलासा हुआ.

19 अक्टूबर को श्रीनगर के नौगाम इलाके में भारत को दहलाने की धमकी भरे पोस्टर मिले. इसी पोस्टर ने सुरक्षा एजेंसियों को दिल्ली तक पहुंचाया, जिससे बड़ा खुलासा हुआ.

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Ravi Prashant
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दिल्ली धमाका लेटेस्ट न्यूज Photograph: (NN/ANI)

19 अक्टूबर की सुबह श्रीनगर के नौगाम इलाके में कुछ धमकी भरे जैश-ए-मोहम्मद के पोस्टर मिले. शुरू में यह एक मामूली घटना लग रही थी, लेकिन यही पोस्टर आगे चलकर भारत की सुरक्षा एजेंसियों को उस आतंकी नेटवर्क तक ले गया, जो दिल्ली में बड़े पैमाने पर धमाका करने की साजिश रच रहा था.

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ओवर ग्राउंड वर्कस ने खोल दिए राज

जम्मू-कश्मीर पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए तीन ओवर ग्राउंड वर्कर्स (OGW) को गिरफ्तार किया. पूछताछ में इन लोगों ने बताया कि वे एक मौलवी इरफ़ान अहमद के संपर्क में थे, जो मेडिकल छात्रों को कट्टरपंथी विचारधारा से प्रभावित कर रहा था. पुलिस ने जब मौलवी का फोन खंगाला तो उसमें पाकिस्तान के हैंडलर उमर बिन खत्ताब के साथ चैट और कॉल रिकॉर्ड मिले. यही सुराग पूरे ऑपरेशन की दिशा बदलने वाला साबित हुआ.

एक बाद के एक खुली कहानी

इस डिजिटल ट्रेल के आधार पर 5 नवंबर को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से डॉक्टर आदिल अहमद राठर को गिरफ्तार किया गया. आदिल की निशानदेही पर एजेंसियां फरीदाबाद पहुंचीं, जहां 8-9 नवंबर की रात अल-फलाह यूनिवर्सिटी से डॉक्टर मुज़म्मिल शकील गनई को भी हिरासत में लिया गया. यहीं से 2,900 किलोग्राम अमोनियम नाइट्रेट, डेटोनेटर, और एक एके-47 राइफल बरामद हुई. यह मात्रा किसी बड़े सीरियल ब्लास्ट नेटवर्क की ओर इशारा कर रही थी.

उमर का मिला था टारगेट? 

जांच में सामने आया कि पूरा नेटवर्क डॉक्टर उमर-उन-नबी के इशारे पर काम कर रहा था. उमर इस आतंकी साजिश का किंगपिन था और उसका लक्ष्य था दिल्ली समेत कई शहरों में एक साथ धमाके करना. लेकिन जब उसके साथियों की गिरफ्तारी शुरू हुई, तो वह घबरा गया. दबाव में आकर उसने एक अधूरा बम तैयार किया और सबूत मिटाने के लिए दिल्ली की ओर निकल पड़ा.

सुरक्षा एजेंसियों की चौकसी कर गई काम

10 नवंबर को शाम 6:52 बजे, दिल्ली के लाल किला के पास वही कार फट गई. जांच एजेंसियों ने पुष्टि की कि बम “प्रीमेच्योर” यानी अधूरा था पूरी तरह विकसित नहीं हुआ था. यह धमाका दरअसल उसकी हड़बड़ी और डर का नतीजा था. अगर जम्मू-कश्मीर पुलिस ने नौगाम में वह पोस्टर न पकड़ा होता, तो शायद यह साजिश देश को झकझोर देती. एक छोटे सुराग से शुरू हुआ यह ऑपरेशन एक बड़ी काउंटर-टेररिज्म सफलता में बदल गया, जिसने भारत को एक विनाशकारी आतंकी हमले से बचा लिया.

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