लोकसभा नेता विपक्ष और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के चुनाव आयोग पर की गई टिप्पणियों ने सियासी हलचल तेज कर दी है. चुनाव आयोग ने इन आरोपों को न केवल निराधार बताया, बल्कि तथ्यों के साथ स्पष्ट किया है कि राहुल गांधी द्वारा लगाए गए आरोप न तो कानूनन टिकते हैं, न ही व्यवहारिक रूप से. आयोग के अनुसार गांधी के आरोपों का कोई वैधानिक आधार नहीं है.
चुनाव आयोग ने तीन बड़े तथ्यों को सामने रखकर स्थिति स्पष्ट की है —
1. वैध कानूनी उपाय का प्रयोग नहीं किया कांग्रेस ने:
कर्नाटक लोकसभा चुनाव 2024 की मतदाता सूची को लेकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) ने RP अधिनियम 1950 की धारा 24 के तहत न तो जिला मजिस्ट्रेट (DM) और न ही राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) के समक्ष कोई अपील दायर की. जबकि यह एक वैध और संवैधानिक कानूनी विकल्प था.
2. कांग्रेस उम्मीदवारों ने खुद चुनाव परिणामों को नहीं दी चुनौती:
लोकसभा चुनाव 2024 की प्रक्रिया को लेकर देशभर में कुल 10 चुनाव याचिकाएं दायर की गईं, लेकिन हैरानी की बात यह रही कि इनमें से कोई भी याचिका किसी कांग्रेस प्रत्याशी द्वारा दायर नहीं की गई, जबकि RP अधिनियम 1951 की धारा 80 के तहत यह एक सीधा और सुलभ कानूनी रास्ता था.
3. चुनाव आयोग ने उठाया सवाल
चुनाव आयोग का कहना है कि अब जबकि वैधानिक विकल्पों का प्रयोग नहीं किया गया तो चुनाव परिणाम के काफी समय बाद मुख्य चुनाव आयुक्त पर ऐसे धमकीपूर्ण और आधारहीन आरोप क्यों लगाए जा रहे हैं? आयोग ने स्पष्ट किया कि इस तरह की भाषा और आरोप लोकतांत्रिक प्रक्रिया की मर्यादाओं के खिलाफ हैं.
बिहार में SIR का मुद्दा अब चुनाव आयोग बनाम राहुल गांधी बन गया है. आयोग ने यह भी इशारा किया कि भविष्य में यदि ऐसी भाषा और रवैया जारी रहा तो संस्थागत जवाबदेही और कानूनी प्रक्रिया दोनों पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है.