म्यांमार में डिजिटल अरेस्ट गैंग के चंगुल से 38 लोग छुड़ाकर भारत लाए गए. 38 में से 21 लोग उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं. सभी 21 लोग मंगलवार रात लखनऊ पहुंच गए. उनसे एलआईयू की टीम ने पांच घंटे तक पूछताछ की. पुलिस ने उनसे से एक फॉर्म भी भरवाया गया, जिसमें 24 बिंदुओं पर सवाल पूछे गए थे.
भारत लौटे चंगुल में फंसे लोगों के साथ वहां-वहां क्या-क्या हुआ, आइये इस बारे में जानते हैं.
पीड़ितों का कहना है कि सोशल मीडिया पर हमने जॉब की पोस्ट देखी थी. हमने उसमें एप्लाई किया तो हमारे डॉक्यूमेंट्स जमा किए गए. इसके बाद इंटरव्यू हुआ. उन्होंने हमें अच्छी सैलरी और अच्छी सुविधाओं का लालच दिया और टूरिस्ट वीजा पर म्यांमार बुला लिया. वहां पहुंचते ही सबसे पहले हमारा पासपोर्ट जब्त किया गया. इसके बाद एक फ्लैट में हमें बंधक बना लिया गया.
उन्होंने आगे बताया कि चीन, पाकिस्तान सहित अन्य देशों में कई युवा वहां काम करते हैं. काम शुरू करने से पहले उन्होंने हमें साइबर क्राइम की ट्रेनिंग दी. इसके बाद डिजिटल अरेस्ट, ट्रेडिंग और शेयर के जाल में फंसाने लगे.
पीड़ितों का कहना है कि हमसे 18-18 घंटे काम करवाया जाता था. काम के वक्त झपकी आने पर सुरक्षाकर्मी बाल खींचते थे. काम करते वक्त सिक्योरिटी गार्ड हर पल हमपर नजर रखते हैं. सीसीटीवी से निगरानी की जाती थी. घर जाने के लिए पूछते थे तो करंट लगा दिया जाता था. दिन में एक बार वे हमें घरवालों से बात करने देते थे.
चीन भेजा जाता था डेटा
बता दें, पुलिस की पूछताछ में एक बात कॉमन आती थी. ठगी के गिरोह को चीन से ऑपरेट किया जाता था. जालसाजी का कॉल सेंटर चलाने वाले लोगों का डेटा चीन भेजा जाता था. साइबर ठगी के लिए टेलीग्राम का इस्तेमाल किया जाता था.
ट्रेनिंग में चीन-पाकिस्तान करते थे मदद
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, म्यांमार, बैंकॉक और कंबोडिया में साइबर अपराधियों को बंधक बनाकर रखा गया है. पाकिस्तान और चीन की मदद से यहां ट्रेनिंग सेंटर चल रहे हैं. पीड़ित युवाओं को ट्रेनिंग देने के बाद कुछ को वहीं रोक लिया जाता है तो कुछ को एजेंट के तौर पर वापस भारत भेज दिया जाता है. एसटीएफ और उत्तर प्रदेश पुलिस ने बीते दो सालों में ऐसे कई गिरोहों का खुलासा किया है.