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मद्रास हाई कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि रेलवे अधिकारी किसी भी यात्री को केवल इस आधार पर ट्रेन से नहीं उतार सकते कि वह विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए यात्रा कर रहा है. यदि उसके पास वैध टिकट है, तो उसे यात्रा करने से रोकना गलत माना जाएगा.
सीमित परिस्थितियों में ही उतारने का अधिकार
न्यायमूर्ति बी. पुगलेंधी ने कहा कि रेलवे अधिनियम 1989 के अनुसार, केवल कुछ ही परिस्थितियों में यात्रियों को ट्रेन से उतारा जा सकता है. इनमें शामिल हैं- बिना टिकट यात्रा करना, संक्रामक रोग से पीड़ित होना या ट्रेन के अनधिकृत हिस्से में जाना. अदालत ने स्पष्ट किया कि इनमें कहीं भी यह प्रावधान नहीं है कि विरोध में शामिल होने वाले वैध टिकटधारी को ट्रेन से उतारा जाए. यदि ऐसा किया जाता है तो अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है.
याचिका और आरोप
आपको बता दें कि यह मामला किसान नेता पी. अय्याकन्नू की याचिका पर सुनवाई के दौरान आया. अय्याकन्नू ने कहा कि वह और उनके संगठन के सदस्य किसानों के हितों और नदी जोड़ो आंदोलन को लेकर नई दिल्ली जा रहे थे. उनके पास वैध टिकट था, फिर भी उन्हें जानबूझकर ट्रेन से उतार दिया गया ताकि वे शांतिपूर्ण विरोध न कर सकें.
वहीं, त्रिची पुलिस आयुक्त ने इसका विरोध किया. पुलिस का कहना था कि अय्याकन्नू बिना अनुमति या अनुमति मिलने पर भी शर्तें तोड़कर प्रदर्शन करता है. आरोप लगाया गया कि उसने कई बार भड़काऊ तरीकों का इस्तेमाल किया- जैसे वरिष्ठ नागरिकों को उपवास पर बैठाना, अर्धनग्न होकर प्रदर्शन करना और खोपड़ियों व हड्डियों की माला पहनना. पुलिस ने बताया कि उसके खिलाफ 73 मामले दर्ज हैं.
अदालत की टिप्पणी
अदालत ने माना कि वैध टिकट वाले यात्री को ट्रेन से उतारना गलत है, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि अय्याकन्नू के आंदोलन के तरीके उचित विरोध की परिभाषा में नहीं आते. अदालत ने कहा कि संविधान नागरिकों को आंदोलन और स्वतंत्र आवाजाही का अधिकार देता है, लेकिन यह अधिकार पूर्ण नहीं है और उचित प्रतिबंधों के अधीन है.
न्यायालय ने जोर दिया कि किसी भी सार्वजनिक प्रदर्शन से पहले अनुमति लेना आवश्यक है और अनुमति मिलने पर तय शर्तों का पालन करना नागरिकों का दायित्व है. अदालत ने यह भी कहा कि आंदोलन का अधिकार नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों से अलग नहीं हो सकता.
फैसला
वर्तमान मामले में अदालत ने पाया कि अय्याकन्नू ने ट्रेन से उतारे जाने की घटनाओं का ठोस विवरण नहीं दिया. इसलिए अदालत ने सामान्य दिशा-निर्देश जारी करने से इनकार किया. हालांकि, न्यायालय ने यह स्वतंत्रता दी कि यदि भविष्य में वैध टिकट होने के बावजूद उन्हें ट्रेन से उतारा जाता है, तो वे संबंधित अधिकारियों के खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं.
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