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Supreme Court on Lalu Yadav Photograph: (Social)
राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख और पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव की मुश्किलें एक बार फिर बढ़ गई हैं. राऊज एवेन्यू कोर्ट ने उन्हें लेकर एक सख्त और विस्तृत लिखित आदेश जारी किया है, जिसमें उन पर लगे आरोपों को गंभीर माना गया है. कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि लालू प्रसाद यादव "इस पूरी साजिश के सूत्रधार थे" और उन्होंने "अपने मंत्री पद का दुरुपयोग किया". कोर्ट ने इस मामले को निजी आर्थिक लाभ के लिए सार्वजनिक पद के दुरुपयोग का स्पष्ट मामला माना है.
कोर्ट के लिखित आदेश की मुख्य बातें:
1. साजिश और पद का दुरुपयोग
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि प्रथम दृष्टया इस बात की पूरी संभावना लगती है कि लालू यादव ने ही इस पूरी साजिश को रचा था. आदेश में कहा गया, "उन्होंने [लालू प्रसाद यादव] अपने मंत्री पद का दुरुपयोग किया."
2. टेंडर में हेराफेरी और आर्थिक लाभ
अदालत ने गंभीर शक जताया है कि रेल मंत्री रहते हुए लालू प्रसाद यादव ने टेंडर प्रक्रिया को प्रभावित किया. इसका सीधा फायदा M/s Sujata Hotel Pvt. Ltd. को पहुँचाया गया. कोर्ट के अनुसार, इस हेराफेरी से लालू के परिवार को आर्थिक लाभ हुआ, जबकि सरकार को दोहरा नुकसान हुआ:
* टेंडर प्रक्रिया में धांधली.
* जमीन को बाजार मूल्य से कम दाम पर बेचना.
3. टेंडर के बदले जमीन का सौदा
अदालत ने इस मामले को सार्वजनिक पद के दुरुपयोग का स्पष्ट उदाहरण बताया. आदेश में कहा गया कि किसी निजी कंपनी के पक्ष में टेंडर प्रक्रिया को प्रभावित करना और उसके बदले में उसी कंपनी से अपने परिवार के नाम पर जमीन हासिल करना- यह स्पष्ट रूप से निजी आर्थिक लाभ के लिए पद का दुरुपयोग है.
4. होटलों के ट्रांसफर में सीधा दखल
कोर्ट ने पाया कि रांची और पुरी के बीएनआर होटलों को IRCTC को ट्रांसफर करने की पूरी प्रक्रिया की जानकारी लालू यादव को थी. उन्होंने 31 अगस्त 2004 और 26 सितंबर 2006 को मौखिक निर्देश देकर ट्रांसफर की गति और प्रक्रिया को प्रभावित किया. यह भी बताया गया है कि टेंडर की प्रक्रिया में जानबूझकर कई बदलाव किए गए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि टेंडर केवल Sujata Hotel Pvt. Ltd. को ही मिले.
5. जमीन के लेन-देन में गड़बड़ी
आदेश में कोचर भाइयों से लालू यादव के परिवार तक हुई जमीन की खरीद-फरोख्त पर भी सवाल उठाए गए हैं. कोर्ट ने पाया कि जब 2005 में विजय और विनय कोचर ने जमीन M/s DMCPL को बेची, तो उसकी कीमत बाज़ार मूल्य से कम रखी गई थी. बाद में, जब इस DMCPL कंपनी के शेयर राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव के नाम हो गए, तो यह "कम दाम वाली जमीन" अप्रत्यक्ष रूप से लालू परिवार के पास चली गई.