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कभी बांग्लादेश की सबसे ताकतवर नेता रहीं शेख हसीना अब भारत की राजधानी दिल्ली की हवा में सांस ले रही हैं. पंद्रह साल तक लगातार सत्ता में रहीं हसीना ने देश की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया, लेकिन उनके कार्यकाल पर तानाशाही और मानवाधिकार हनन के आरोप भी लगे. अगस्त 2024 में छात्र आंदोलन ने उनकी सरकार की नींव हिला दी, और वे हेलिकॉप्टर से ढाका छोड़कर भारत आ गईं. लंबे वक्त के बाद शेक हसीना ने अपनी चुप्पी तोड़ी है. उन्होंने खुद को दिल्ली में सुरक्षित बताया और बांग्लादेश लौटने पर भी जवाब दिया.
हसीना की नई जिंदगी, आजाद लेकिन सतर्क
दिल्ली में हसीना अब शांत जीवन बिता रही हैं. रॉयटर्स को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि वे यहां “फ्री” महसूस करती हैं. वे अक्सर लोदी गार्डन में टहलने निकलती हैं, जहां कुछ सुरक्षाकर्मी उनके साथ रहते हैं.
उनकी सावधानी की वजह भी गहरी है 1975 के सैन्य तख्तापलट में उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान और तीन भाइयों की हत्या कर दी गई थी. हसीना उसी समय विदेश में थीं, इसलिए बच गईं. वे कहती हैं, 'मुझे अपने देश लौटने की चाह है, लेकिन तब जब वहां कानून का राज और वैधानिक सरकार हो.'
सत्ता से बेदखली की वजह- छात्रों का विद्रोह
हसीना की सरकार को गिराने वाली चिंगारी कोटा सिस्टम पर हुआ छात्र आंदोलन था. नौकरियों में आरक्षण नीति को लेकर युवाओं का गुस्सा हिंसक हो गया. भीड़ ने प्रधानमंत्री आवास तक को घेर लिया. प्रशासन ने बल प्रयोग किया और देश भर में आगजनी मच गई. इसी अराजकता के बीच हसीना को दिल्ली की शरण लेनी पड़ी.
अवामी लीग पर प्रतिबंध और हसीना की प्रतिक्रिया
अंतरिम प्रधानमंत्री मुहम्मद यूनुस की सरकार ने सुरक्षा कारणों से अवामी लीग की राजनीतिक गतिविधियों पर रोक लगा दी है। चुनाव आयोग ने पार्टी का रजिस्ट्रेशन भी निलंबित कर दिया. इस पर हसीना का कहना है-'आप जनता की आवाज़ नहीं दबा सकते. अगर अवामी लीग को रोका गया, तो करोड़ों वोटर चुनाव का बहिष्कार करेंगे.' वे मानती हैं कि पार्टी उनकी निजी संपत्ति नहीं है, लेकिन उनके बेटे सजीब वाजेद ने संकेत दिया है कि जरूरत पड़ने पर वे नेतृत्व की जिम्मेदारी संभाल सकते हैं.
खूनी कार्रवाई और अंतरराष्ट्रीय जांच
2024 के छात्र विद्रोह के दौरान सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 1,400 से अधिक लोगों की मौत हुई. संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने हसीना पर हिंसा के आदेश देने का आरोप लगाया है. 13 नवंबर को फैसला आने वाला है- अगर दोषी पाई गईं, तो उनकी राजनीतिक वापसी लगभग असंभव मानी जा रही है.
हसीना का पलटवार- यह साजिश है
हसीना ने सभी आरोपों को सिरे से खारिज किया है. उन्होंने कहा, 'यह एक कंगारू कोर्ट है. पहले सजा तय की गई, फिर ट्रायल शुरू किया गया.' वे खुद को लोकतंत्र की रक्षक बताती हैं और दावा करती हैं कि उन्हें राजनीतिक प्रतिशोध का शिकार बनाया जा रहा है.
आगे की राह
दिल्ली में निर्वासन के दिनों में हसीना भले ही शांत दिखती हों, लेकिन बांग्लादेश की राजनीति में उनका प्रभाव अभी खत्म नहीं हुआ. यदि अवामी लीग चुनाव से बाहर रहती है, तो आने वाले वर्ष का मतदान खुद अपनी वैधता के संकट से गुजर सकता है. यानी, जैसा उन्होंने कहा, 'बांग्लादेश का खेल अभी बाकी है.'
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