जूता कांड पर CJI बी.आर. गवई का सामने आया रिएक्शन, बोले- 'जो हुआ वो भूला हुआ अध्याय है'

मुख्य न्यायाधीश ने अपनी जूते कांड पर अपनी चुप्पी तोड़ी है. घटना के चार दिन बाद, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई ने आखिरकार अपनी बात रखी है. उन्होंने कहा, "जो हुआ उससे मैं स्तब्ध हूं"

मुख्य न्यायाधीश ने अपनी जूते कांड पर अपनी चुप्पी तोड़ी है. घटना के चार दिन बाद, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई ने आखिरकार अपनी बात रखी है. उन्होंने कहा, "जो हुआ उससे मैं स्तब्ध हूं"

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Ravi Prashant
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CJI बी.आर. गवई Photograph: (ani)

चीफ जस्टिस ने जूता कांड पर अपनी चुप्पी तोड़ ली है. घटना के चार दिन बाद आखिरकार देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई ने इस पर अपनी बात रखी है. उन्होंने कहा कि “जो कुछ भी हुआ, उससे मैं स्तब्ध था. लेकिन मेरे लिए यह अब एक भुला दिया गया अध्याय है.” CJI गवई ने अपने वक्तव्य में यह भी कहा कि न्यायालय की गरिमा सबसे ऊपर है और किसी एक घटना से अदालत के कामकाज या न्याय के प्रति उनके विश्वास में कोई कमी नहीं आई है. उन्होंने संयम और शांति बनाए रखने की अपील की.

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ये कोर्ट की गरिमा पर प्रहार है

हालांकि, इस घटना पर उनके साथ पीठ में मौजूद रहे जस्टिस उज्जल भुइयां ने थोड़ा अलग रुख अपनाया. उन्होंने कहा कि “यह सिर्फ किसी व्यक्ति पर नहीं, बल्कि पूरे सुप्रीम कोर्ट की गरिमा पर प्रहार है” जस्टिस भुइयां ने साफ कहा कि वे इस घटना के लिए किसी को भी किसी तरह का माफीनामा नहीं दे रहे हैं. उनके अनुसार, “हम जज के रूप में कई बार ऐसे निर्णय लेते हैं जो सबको पसंद नहीं आते, पर इससे हमारे फैसलों पर विश्वास या हमारी निष्पक्षता पर कोई असर नहीं पड़ता.”

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने क्या कहा? 

वहीं, देश के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी इस घटना की कड़ी निंदा की. उन्होंने कहा कि “यह एक अक्षम्य अपराध था, लेकिन जिस तरह कोर्ट और पीठ ने धैर्य, संयम और उदारता दिखाई, वह अत्यंत प्रेरक है.” उन्होंने कहा कि यह अदालत की परिपक्वता और गरिमा का परिचायक है. 

चीफ जस्टिस के ऊपर जूता फेंकने की कोशिश

बता दें कि सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही के दौरान एक 71 वर्षीय वकील किशोर कुमार ने अचानक मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की ओर जूता फेंकने की कोशिश की थी. सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत हस्तक्षेप किया और स्थिति को संभाल लिया. इस घटना के बाद में वकील को छोड़ दिया गया. 

बता दें कि वह वकील मध्य प्रदेश के खजुराहो मंदिर परिसर में भगवान विष्णु की प्रतिमा के पुनर्स्थापन से जुड़ी पिछली सुनवाई में CJI की टिप्पणी से नाराज था. यह घटना सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में बेहद दुर्लभ मानी जा रही है. हालांकि, अदालत के संयमित रुख और जजों की संतुलित प्रतिक्रिया ने यह संदेश जरूर दिया है कि न्यायपालिका की गरिमा किसी भी उकसावे से डगमगाने वाली नहीं है.

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