राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के पहले देश भर में हो रहे संगठन के चुनाव में बीजेपी इस बार जातीय समीकरण का पूरा ध्यान रख रही है. अब तक देश भर में नियुक्त हुए 25 प्रदेश अध्यक्षों में जातीय संतुलन रखा गया है ताकि चुनावी राजनीति में पार्टी को नुकसान ना उठाना पड़े और संगठन में भी असंतोष न हो.
संगठन के चुनाव में पार्टी ने जातीय समीकरण पूरा ख्याल
बीजेपी में नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के लिए चल रहे संगठन के चुनाव में पार्टी ने जातीय समीकरण पूरा ख्याल रखा है. बुधवार तक 25 राज्यों के संपन्न हुए संगठन के चुनाव में जाती एक बड़ी कसौटी रही है. खास तौर पर प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति से पार्टी ने जातीय संतुलन साधने की भरपूर कोशिश की है और हिंदी प्रदेशों में और बीजेपी के गढ़ कहे जाने वाले राज्यों में तो अध्यक्ष की जाति पर और भी बारीकी से विचार किया गया है. उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य में अध्यक्ष का चुनाव तो जातीय समीकरण की वजह से ही फंसा हुआ है. बिहार विधानसभा के चुनाव को देखते हुए पार्टी ने दिलीप जायसवाल को अध्यक्ष बनाया जो वैश्य ओबीसी समाज से हैं. ताकि पार्टी के कोर वोट में बिखराव ना हो. सरकार में उपमुख्यमंत्री के पद के जरिए जो जातीय समीकरण बनाए गए थे, उसे प्रदेश अध्यक्ष से संतुलित कर दिया है.
बीजेपी ने इस तरह से साधा जातीय समीकरण
इसी तरह हरियाणा में ओबीसी मुख्यमंत्री है तो जाट समुदाय से आने वाले मोहन लाला बडौली को अध्यक्ष बना दिया है. राजस्थान ब्राह्मण मुख्यमंत्री है तो ओबीसी मदन राठौड़ को प्रदेश की बागडोर दी गई है और हिमाचल प्रदेश में विपक्ष के नेता जयराम ठाकुर जो राजपूत बिरादरी के है. तो संतुलन के लिए राजीव बिंदल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है जो बनिया समाज से है. दूसरे पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में ब्राह्मण को अध्यक्ष बनाया गया है. क्योंकि मुख्यमंत्री ठाकुर समाज से हैं. मध्यप्रदेश में हेमंत खंडेलवाल अध्यक्ष बने हैं, बनिया अगड़ी जाती से आते हैं. क्योंकि मुख्यमंत्री पिछड़े समाज का है. छत्तीसगढ़ किरण सिंह देव अध्यक्ष बने हैं जो ठाकुर हैं. क्योंकि मुख्यमंत्री आदिवासी समाज से हैं. महाराष्ट्र जहां बीजेपी के सामने सबसे ज्यादा जातीय राजनीति की चुनौती है तो वहीं मराठा समाज के रविन्द्र चव्हाण को अध्यक्ष बनाया गया है. क्योंकि फडणवीस ब्राह्मण है.
रखा सीएम की चॉइस का ख्याल
इसी तरीके से पार्टी ने बाकी राज्यों के अध्यक्षों के चुनाव से भी जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है. पश्चिम बंगाल में ब्राह्मण अध्यक्ष बनाए जाने की संभावना है तो दक्षिण के राज्यों में भी अगड़ी पिछड़ी जाति के समीकरण के हिसाब से प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति हुई है. प्रदेश अध्यक्षों और संगठन के चुनाव में जातीय समीकरण के साथ-साथ इस बात का भी पार्टी आलाकमान ने ध्यान रखा है कि संगठन और सरकार में टकराव न हो. इसके लिए जिन प्रदेशों में सरकार है, वहां के मुख्यमंत्री के चॉइस का भी ख्याल रखा गया है. यही नहीं आगे होने वाले जातीय जनगणना की वजह से भी इस बार संगठन चुनाव में बीजेपी ने जातीय संतुलन स्थापित करने की कोशिश की है.
वैसे बीजेपी किसी भी स्तर पर जातीय राजनीति या समीकरण से इंकार करती है, लेकिन पार्टी के तमाम नेताओं का कहना है की आगे होने वाले विधानसभा चुनाव और लोक सभा चुनाव 29 की वजह से जातीय समीकरण को साधना पार्टी की राजनीतिक मजबूरी है. ऐसे में नियुक्तियाँ केवल संगठनात्मक नहीं हैं. इनके पीछे है एक सधे हुए जातीय समीकरण का गणित है. जिसका सीधा असर राज्यों की राजनीति पर पड़ने वाला है.
विकास चंद्र