भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों पुराने सिंधु जल संधि को लेकर पहले ही तनाव है, लेकिन अब इस पूरे मुद्दे में चीन का हस्तक्षेप एक नया और जटिल मोड़ ले सकता है. दरअसल, सिंधु और सतलुज जैसी प्रमुख नदियां तिब्बत से निकलती हैं, जिस पर चीन का पूरा कंट्रोल है. ऐसे में अगर चीन इन नदियों के जल प्रवाह को रोकने या मोड़ने का प्रयास करता है, तो इसका असर सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान पर भी पड़ सकता है.
सिंधु जल संधि और वर्तमान स्थिति
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर हुए थे, जिसके तहत भारत को पूर्वी नदियां सतलुज, ब्यास और रावी और पाकिस्तान को पश्चिमी नदियां सिंधु, झेलम और चेनाब दी गईं. हाल ही में पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने इस संधि को अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया है. इससे पाकिस्तान को दी जाने वाली जल आपूर्ति पर असर पड़ सकता है, लेकिन असली चिंता यह है कि अगर चीन भी इसमें कूद पड़ा तो स्थिति और भयावह हो सकती है.
तिब्बत में चीन की पकड़ और नदी नियंत्रण
सिंधु नदी का उद्गम मानसरोवर झील और कैलाश पर्वत के पास स्थित सेंग खाबब हिमनद से होता है. यह तिब्बत से निकलकर लद्दाख होते हुए पाकिस्तान पहुंचती है. वहीं सतलुज नदी रक्षस ताल के पास स्थित लोंगचेन खाबब ग्लेशियर से निकलती है और हिमाचल होते हुए पंजाब और फिर पाकिस्तान में जाकर सिंधु से मिलती है.
तिब्बत में चीन ने पहले ही इन दोनों नदियों पर बांध और बैराज बना लिए हैं जैसे कि सेंगे त्संगपो और झाड़ा गॉर्ज जैसे प्रोजेक्ट, जिनसे चीन जल प्रवाह को नियंत्रित कर सकता है.
क्या चीन पहले भी पानी को हथियार बना चुका है?
- 2016 में चीन ने ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी शियाकु का प्रवाह रोका था.
- 2020 में गलवान घाटी विवाद के दौरान चीन ने वहां की नदी को ब्लॉक कर दिया था, जिससे भारत के कई हिस्सों में जल संकट हुआ.
- 2004 में चीन ने सतलुज की सहायक नदी पर एक कृत्रिम झील बना दी थी, जिससे भारत में ‘वॉटर बम’ की आशंका पैदा हो गई थी.
क्या भारत और पाकिस्तान पर होगा सीधा असर?
अगर चीन जल प्रवाह कम करता है तो इससे लद्दाख में कृषि और सैन्य ठिकानों को नुकसान हो सकता है. पंजाब और हिमाचल में जलविद्युत और सिंचाई प्रोजेक्ट जैसे भाखड़ा डैम पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पहले से जल निर्भर है. ऐसे में भारत द्वारा पानी रोके जाने की स्थिति में अगर चीन भी पानी रोकता है, तो पाकिस्तान दो तरफा दबाव में आ सकता है.
क्या चीन सब कुछ रोक सकता है?
विशेषज्ञों के अनुसार, सिंधु का केवल 10–15% और सतलुज का लगभग 20% हिस्सा ही तिब्बत से आता है. यानी पूरी नदी को रोक पाना संभव नहीं. साथ ही, तिब्बत एक भूकंप-प्रवण इलाका है, जहां बड़े बांध बनाना जोखिम भरा है.
भारत-चीन के बीच कोई जल संधि नहीं है
भारत और चीन के बीच जल प्रवाह से जुड़े कुछ डाटा साझा करने के समझौते तो हैं, जो 2002 से 2018 के बीच हुए थे और 2023 में समाप्त हो गए. लेकिन अब भी चीन सतलुज के लिए कुछ डाटा साझा कर रहा है.
हालाँकि, कोई भी औपचारिक जल बँटवारा समझौता नहीं है, जिससे चीन को खुली छूट मिलती है.
क्या भविष्य में पानी युद्ध का कारण बनेगा?
पानी अब केवल एक प्राकृतिक संसाधन नहीं रहा. यह एक सामरिक हथियार बनता जा रहा है. भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि की अनिश्चितता और चीन की तिब्बत पर पकड़ इस पूरे इलाके को एक नए संकट की ओर धकेल सकती है. विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर चीन ने पानी रोकने की नीति अपनाई, तो इससे सिर्फ भारत-पाकिस्तान ही नहीं, पूरा दक्षिण एशिया जल संकट और तनाव की नई लहर में डूब सकता है.
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