130th Amendment Bill 2025: लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह द्वारा पेश किए गए 130वें संशोधन विधेयक को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है. यह विधेयक उन नेताओं को पद से हटाने का प्रावधान करता है, जिन पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं और वे जेल में बंद हैं. विपक्ष का कहना है कि यह विधेयक न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला है, जबकि सत्ता पक्ष इसे राजनीति में पारदर्शिता लाने की दिशा में अहम कदम बता रहा है.
पूर्व सीएम रावत ने किया बिल का समर्थन
भारतीय जनता पार्टी के सांसद और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस बिल का समर्थन करते हुए कहा कि शीर्ष संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के लिए नैतिकता सबसे महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा, 'आजादी के 78 साल बाद भी हमने देखा कि कुछ मुख्यमंत्री जेल से शासन चला रहे थे. यह लोकतंत्र के मूल भाव के खिलाफ है. शासन जेल से नहीं चल सकता. यह विधेयक राजनीति में सुचिता और जनता का विश्वास कायम करने के लिए जरूरी है.'
रावत ने यह भी जोड़ा कि जब किसी को उच्च पद दिया जाता है तो उसकी राजनीतिक और आपराधिक पृष्ठभूमि की पूरी तरह से जांच होनी चाहिए. उनका मानना है कि इससे जनता के मन में नेताओं के प्रति भरोसा बढ़ेगा और अपराधियों की राजनीति में घुसपैठ रोकी जा सकेगी.
विपक्षी दलों ने बताया 'काला कानून'
वहीं, विपक्षी दलों ने इस विधेयक को 'काला कानून' बताया है. समाजवादी पार्टी के सांसद अवधेश प्रसाद ने कहा कि यह कदम न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप है. उनका तर्क था कि दोष सिद्ध करना अदालत का अधिकार है, और जब तक अदालत किसी को दोषी नहीं ठहराती, तब तक उसे पद से हटाना न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है. विपक्ष का कहना है कि कई निर्दोष लोग सबूत न होने के बावजूद सालों जेल में रहते हैं, ऐसे में यह प्रावधान उनके अधिकारों का हनन करेगा.
अपराध पर लगेगी लगाम- सत्तापक्ष का दावा
हालांकि, विधेयक में यह प्रावधान भी रखा गया है कि यदि अदालत एक महीने के भीतर तय कर देती है कि आरोपित अपराध की सजा पांच साल से कम है, तो संबंधित नेता अपने पद पर वापस आ सकता है. सत्तापक्ष का दावा है कि इस कानून से राजनीति में अपराधीकरण पर लगाम लगेगी, जबकि विपक्ष का कहना है कि सरकार इसे विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकती है. फिलहाल, यह विधेयक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजा गया है.
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