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बांग्लादेश के बिगड़े हालात के कारण भारत पर छाया संकट, इन शहरों में बेरोजगारी चरम पर

बांग्लादेश में स्थितियां न सुधरी तो उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश की 2 सैकड़ा सरसों तेल उत्पादन इकाइयों पर बंद होने का संकट खड़ा हो जाएगा.

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Mohit Saxena
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बांग्लादेश में सत्ता की अस्थिरता का असर मध्यप्रदेश के ग्वालियर चंबल अंचल सहित राजस्थान व उत्तर प्रदेश में भी देखा जा रहा है. स्थितियों में सुधार नहीं हुआ तो चंबलांचल के आधा दर्जन साल्वेंट प्लांट सहित उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश की 2 सैकड़ा सरसों तेल उत्पादन इकाइयों पर बंद होने का संकट खड़ा हो जाएगा. बांग्लादेश की हिंसा के कारण मुरैना के आधा दर्जन सॉल्वेंट इकाइयों के 300 करोड़ रुपए से अधिक खुले आसमान के नीचे पड़े हुए हैं. यह राशि रेलवे के उन रेक में भरी हुई डाओसी की है जो मुरैना ग्वालियर से बांग्लादेश भेजे गए थे, लेकिन बीते एक माह से अधिक समय के बाद भी बांग्लादेश की सीमा में प्रवेश नहीं कर पाए. 

तेल उत्पादन इकाइयां बंद पड़ी हुई हैं

वर्तमान में सॉल्वेंट प्लांट सहित अधिकांश सरसों तेल उत्पादन इकाइयां बंद पड़ी हुई हैं. इससे हजारों मजदूर, कर्मचारी और ट्रांसपोर्टर बेरोजगार हो गए. अंचल के व्यवसायियों का मानना है कि उन्हें इस घाटे से राहत दिलाने के लिए पूर्व की भांति अत्यधिक निर्यात पर मिलने वाली 5 से 12 फीसदी तक प्रोत्साहन राशि को पुन बहाल किया जाए.

ग्वालियर चंबल संभाग के मुरैना और ग्वालियर, श्योपुर, शिवपुरी, डबरा, दतिया सहित राजस्थान व  उत्तर प्रदेश के कई जिलों में सरसों का उत्पादन अधिक होने के कारण यहां लगभग दो सैकड़ा से अधिक सरसों तेल उत्पादन की इकाइयां संचालित हैं. जिसमें  मुरैना, भिण्ड, ग्वालियर में ही 50 के लगभग इकाइयां स्थापित है. सरसों में से लगभग 37 प्रतिशत तेल निकलता है. लगभग 63 प्रतिशत खली का उत्पादन होता है. 

प्रतिदिन 3500 कुंतल उत्पादन होता है

इस खली में से 8 प्रतिशत सरसों तेल निकालने के लिए मुरैना जिले में आधा दर्जन सॉल्वेंट प्लांट संचालित है. इस खली में से सरसों के अंतिम उत्पाद के रूप में डीओसी का प्रतिदिन 3500 कुंतल उत्पादन होता है. इसका उपयोग मुर्गी व मछली दाना के साथ पशु आहार के रूप में किया जाता है. इसकी 90 प्रतिशत खपत बांग्लादेश में होती थी. मुरैना के सांक तथा ग्वालियर के रायरू रेल्वे स्टेशन  पर मालगोदाम से प्रतिदिन एक रैक बांग्लादेश के लिए रवाना होती थी. एक रैक में 2500 कुंतल डीओसी भरकर भेजी जाती है. इसकी कीमत प्रति रैक 6 करोड़ रुपए होती है.

25 से 30 रैक बांग्लादेश के लिए रवाना होती है

लगभग एक माह में 25 से 30 रैक बांग्लादेश के लिए रवाना होती है. बीते डेढ़ माह से राजनीतिक अस्थिरता के कारण उत्पन्न व्यावसायिक गतिविधियां ठप्प हो गई. मुरैना से भेजी गई सैकड़ो रैंक अनेक रेल मार्ग पर खड़ी हुई है. डीओसी की सप्लाई बाधित होने के कारण इस व्यवसाय की चेन रुक गई है.  इसमें सबसे अधिक प्रभावित साल्वेंट प्लांट संचालक दिखाई दे रहे हैं. इनके गोदाम में करोड़ों रुपए का माल जहां जमा है. 

वहीं लगभग 300 करोड़ रुपए की राशि का माल रेलवे रेक में भरा हुआ रेल पटरी पर खड़ा हुआ है. उत्पादन बंद होने से सॉल्वेंट इकाइयां जहां बंद हुई वहीं इस चैन की दूसरी कड़ी सरसों तेल उत्पादन  की लगभग दो सैकड़ा इकाइयां अपने आप ही बंद हो गई. यह सभी इकाइयां अब आर्थिक संकट से जूझने लगी है.मुरैना के साल्वेंट प्लांट में पंजाब व हरियाणा के कुछ सरसों तेल उत्पादन इकाइयों की   भी खली प्रक्रिया के लिए आती थी.

सबसे अधिक प्रभाव लगभग 20 हजार मजदूर पर

सरसों तेल उत्पादन इकाइयों के बंद होने का सबसे अधिक प्रभाव लगभग 20 हजार मजदूर, ट्रांसपोर्टर, ड्राइवर एवं कर्मचारियों का पड़ा है. यह सभी बेरोजगार हो गए. वहीं कुछ मजदूर इन मिलों में व्यवस्थाएं सुधारने के नाम पर काम तो कर रहे हैं लेकिन प्रतिदिन 600 से ₹700 रूपए कमाने वाला मजदूर मात्र 100 से 200 रुपए प्रतिदिन की आय पर सिमट गई है. वहीं मजदूर कम आय से अत्यधिक परेशान हैं.इसी तरह ट्रक ड्राइवर ने अपने ट्रक साल्वेंट प्लांट के अंदर और बाहर खड़े कर दिए हैं. इन ड्राइवर पर भुखमरी का साया मडराने लगा है.

सरसों तेल के इस व्यवसाय की कड़ियां टूटने का असर मिल संचालक ,मजदूर, ट्रक ड्राइवर, मालिक ,कर्मचारियों के साथ-साथ रेल विभाग पर भी दिख रहा है. रेल विभाग को एक रैक से 70 से 75 लाख रुपए का भाडा मिलता था. लगभग पिछले 45 दिन से रेल की यह आमदनी बिल्कुल बंद हो गई है . रेलवे के मालगोदाम सूने पड़े हुए हैं. यहां पर विगत डेढ़ माह से दिन में न कोई दिखाई देता है न रात में. बस सिर्फ डीओसी से भरी हुई मालगाड़ियां ही खड़ी दिखाई दे रही है.

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