/newsnation/media/media_files/2025/12/17/atal-bihari-vajpayee-and-abudl-kalam-azad-2025-12-17-15-39-49.jpg)
भारत के 11वें राष्ट्रपति के चयन से पहले सियासी गलियारों में एक चौंकाने वाली चर्चा शुरू हुई थी. दरअसल भारतीय जनता पार्टी के भीतर से ही सुझाव आया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी राष्ट्रपति पद स्वीकार करें और प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी लालकृष्ण आडवाणी संभालें. यह विचार राजनीतिक दृष्टि से बड़ा था, लेकिन वाजपेयी के सिद्धांतों के सामने टिक नहीं पाया. ये दावा है तात्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मीडिया सलाहकार रहे अशोक टंडन का. उन्होंने अपनी किताब में ये दावा किया है.
वाजपेयी का इनकार और लोकतांत्रिक सोच
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मीडिया सलाहकार रहे अशोक टंडन ने प्रभात प्रकाशन की ओर से प्रकाशित पुस्तक 'अटल संस्मरण' में इस पूरे प्रकरण का उल्लेख किया है. उन्होंने लिखा है कि प्रधानमंत्री रहते हुए वाजपेयी ने इस प्रस्ताव को तुरंत खारिज कर दिया. उनका मानना था कि बहुमत के सहारे किसी लोकप्रिय प्रधानमंत्री का राष्ट्रपति बनना संसदीय लोकतंत्र की भावना के खिलाफ होगा. उन्होंने इसे एक 'गलत परंपरा' बताते हुए कहा कि ऐसे उदाहरण भविष्य के लिए नुकसानदायक साबित हो सकते हैं. यह फैसला उनके लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक मर्यादाओं के प्रति सम्मान को दर्शाता है.
/filters:format(webp)/newsnation/media/media_files/2025/12/17/atal-sansmaran-2025-12-17-15-42-12.jpg)
भाजपा के भीतर मंथन और वैकल्पिक नाम
इस दौर में भाजपा और एनडीए के भीतर राष्ट्रपति पद को लेकर गहन विचार-विमर्श चल रहा था. कुछ नेता पार्टी के वरिष्ठ चेहरे को आगे लाने के पक्ष में थे, तो कुछ अन्य नामों पर भी चर्चा हो रही थी. इसी बीच विपक्ष भी सक्रिय था और मौजूदा राष्ट्रपति के. आर. नारायणन को दोबारा उम्मीदवार बनाने की कोशिशें चल रही थीं, हालांकि उन्होंने सशर्त सहमति की बात कही थी.
किसने किया था डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का नाम आगे
अशोक टंडन की किताब के मुताबिक, राजनीतिक उहापोह के बीच अटल बिहारी वाजपेयी ने एक ऐसा नाम आगे बढ़ाया, जिस पर सत्ता पक्ष और विपक्ष-दोनों सहमत हो सकें. यह नाम था डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का. जब कांग्रेस नेतृत्व के सामने यह प्रस्ताव रखा गया, तो कुछ पल के लिए सन्नाटा छा गया. लेकिन कलाम की वैज्ञानिक प्रतिष्ठा, निष्कलंक छवि और राष्ट्रीय स्वीकार्यता के चलते विरोध की कोई गुंजाइश नहीं बची.
कलाम का राष्ट्रपति बनना, राजनीति से ऊपर का फैसला
2002 में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम सर्वसम्मति से भारत के 11वें राष्ट्रपति चुने गए. उनका राष्ट्रपति बनना भारतीय राजनीति में दुर्लभ उदाहरण था, जहां दलगत राजनीति से ऊपर उठकर एक राष्ट्रीय व्यक्तित्व को चुना गया. कलाम ने 2007 तक राष्ट्रपति रहते हुए युवाओं, विज्ञान और राष्ट्र निर्माण को नई दिशा दी.
अटल-आडवाणी जोड़ी का संतुलन
इस पूरे घटनाक्रम में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की जोड़ी की परिपक्वता भी सामने आई. मतभेदों के बावजूद दोनों नेताओं के रिश्तों में सार्वजनिक टकराव नहीं दिखा. एक-दूसरे के प्रति सम्मान और भरोसा उनकी राजनीतिक साझेदारी की सबसे बड़ी ताकत रहा.
इतिहास में दर्ज एक नैतिक निर्णय
राष्ट्रपति पद ठुकराने का वाजपेयी का फैसला भारतीय राजनीति में नैतिक साहस का उदाहरण माना जाता है. सत्ता होते हुए भी पद का मोह न करना और लोकतांत्रिक परंपराओं की रक्षा करना यही अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीति की पहचान थी. यही कारण है कि उनका यह निर्णय आज भी राजनीतिक इतिहास में विशेष सम्मान के साथ याद किया जाता है.
/newsnation/media/agency_attachments/logo-webp.webp)
Follow Us