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Indian Army Photograph: (News Nation)
दसवीं बटालियन, महार रेजिमेंट के हवलदार नरेश कुमार ने असाधारण साहस और मानवता का परिचय दिया है. 8 फरवरी 2025 को उनके 18 वर्षीय बेटे, मास्टर अर्शदीप सिंह की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई. इस असहनीय दुःख के बीच उन्होंने एक ऐसा निर्णय लिया जो दूसरों के लिए जीवनदान बन गया.
गंभीर रूप से बीमार मरीजों को नई जिंदगी दी
अपने बेटे के अंगों को दान करने का निर्णय लेते हुए उन्होंने छह गंभीर रूप से बीमार मरीजों को नई जिंदगी दी. 16 फरवरी 2025 को उन्होंने अर्शदीप के लिवर, किडनी, पैंक्रियास और कॉर्निया दान करने की सहमति दी, जिससे उनके बेटे की यादें सिर्फ परिवार की स्मृतियों में ही नहीं, बल्कि उन जिंदगियों में भी जीवित रहेंगी जो उनके इस महान कदम से बच सकीं.
कमांड अस्पताल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
इस मानवीय प्रयास में चंडी मंदिर स्थित कमांड अस्पताल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 16 फरवरी को ही अर्शदीप का लिवर और किडनी ग्रीन कॉरिडोर के माध्यम से दिल्ली स्थित आर्मी अस्पताल रिसर्च एंड रेफरल में पहुंचाए गए. वहीं, एक किडनी और पैंक्रियास पीजीआई में भर्ती टाइप 1 डायबिटीज और क्रॉनिक किडनी डिजीज से जूझ रहे मरीज को प्रत्यारोपित किए गए. कॉर्निया को जरूरतमंद मरीजों को दृष्टि प्रदान करने के लिए सुरक्षित रखा गया. हवलदार नरेश कुमार का यह बलिदान उनकी अदम्य इच्छाशक्ति और मानवता का प्रतीक है. उनका यह कदम समाज में अंगदान के प्रति जागरूकता और प्रेरणा का स्रोत बनेगा. उन्होंने दिखाया कि व्यक्तिगत क्षति की घड़ी में भी हम दूसरों के जीवन में रोशनी ला सकते हैं.
समाज के नाम मानवता और प्रेम का संदेश
कमांड अस्पताल, चंडीमंदिर, जो अंगदान और प्रत्यारोपण में अपनी विशेषज्ञता के लिए प्रसिद्ध है, ने इस पुनीत कार्य को सफल बनाने में सराहनीय भूमिका निभाई. अस्पताल प्रशासन ने हवलदार नरेश कुमार के इस निर्णय की सराहना करते हुए कहा कि उनका यह साहसिक कदम समाज को अंगदान की जरूरत और उसके महत्व को समझने में मदद करेगा. यह कहानी सिर्फ एक पिता की पीड़ा और उसके साहस की नहीं है, बल्कि यह एक संदेश है कि मानवता और प्रेम की भावना हर परिस्थिति में जीवित रह सकती है. हवलदार नरेश कुमार का यह निस्वार्थ कार्य समाज को जीवनदान और आशा की एक नई परिभाषा देता है.