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Aravali Row: अरावली पर्वतमाला को लेकर देशभर में चर्चाएं तेज हैं. सोशल मीडिया और कुछ रिपोर्ट्स में यह दावा किया जाने लगा कि अरावली क्षेत्र में नियमों को लेकर ढील दी जा रही है. इन अटकलों के बीच केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री और अलवर से सांसद भूपेंद्र यादव ने स्थिति को पूरी तरह स्पष्ट करते हुए कहा कि अरावली क्षेत्र में न तो कोई छूट दी गई है और न ही भविष्य में दी जाएगी. उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि अरावली को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भ्रम फैलाया गया है.
अरावली पर सरकार की नीति बिल्कुल साफ
भूपेंद्र यादव ने साफ शब्दों में कहा कि सरकार अरावली पर्वतमाला की सुरक्षा और संरक्षण के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. उन्होंने सोमवार को प्रेस वार्ता के जरिए मीडिया से यह बात कही है. उन्होंने बताया कि अरावली केवल एक राज्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात के चार राज्यों में फैली हुई है. इसका क्षेत्रफल 39 जिलों तक विस्तृत है, इसलिए इसके संरक्षण से जुड़े नियमों का प्रभाव व्यापक है.
1985 से चल रही है कानूनी प्रक्रिया
केंद्रीय मंत्री ने बताया कि अरावली को लेकर कानूनी प्रक्रिया कोई नई नहीं है। वर्ष 1985 से इस क्षेत्र से जुड़ी याचिकाएं अदालतों में चल रही हैं. इन याचिकाओं का मुख्य उद्देश्य अरावली क्षेत्र में अवैध और अनियंत्रित खनन पर रोक लगाना रहा है. सरकार इन याचिकाओं की भावना के अनुरूप सख्त नियमों के पक्ष में है और पर्यावरण संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है.
"Process has been made stricter": Union Minister Bhupinder Yadav on SC accepting Centre's Aravalli definition
— ANI Digital (@ani_digital) December 22, 2025
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सुप्रीम कोर्ट का निर्देश, एक समान परिभाषा जरूरी
भूपेंद्र यादव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने चारों राज्यों को निर्देश दिया है कि अरावली पर्वतमाला की एक समान और स्पष्ट परिभाषा तय की जाए. इसका मकसद यह है कि कोई भी राज्य अपनी सुविधा के अनुसार अलग-अलग व्याख्या न कर सके और नियमों का उल्लंघन न हो. इसी आदेश के तहत सरकार ने वैज्ञानिक आधार पर अरावली की एक स्पष्ट परिभाषा तय की है.
100 मीटर सुरक्षा क्षेत्र पर फैला भ्रम
मंत्री ने 100 मीटर के सुरक्षा क्षेत्र को लेकर फैलाई जा रही गलतफहमियों पर भी खुलकर बात की. उन्होंने कहा कि कुछ लोग यह प्रचार कर रहे हैं कि 100 मीटर का नियम पहाड़ियों के ऊपर से नीचे तक खुदाई की अनुमति देता है, जबकि यह पूरी तरह गलत है. यह सुरक्षा क्षेत्र केवल संरक्षण के उद्देश्य से तय किया गया है, न कि खनन को बढ़ावा देने के लिए.
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