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सुप्रीम कोर्ट (Social Media)
सुप्रीम कोर्ट में लंबित वक्फ संशोधन कानून पर देश की सबसे बड़ी अदालत ने जब तक अंतिम निर्णय न हो जाए, तब तक इस कानून के कुछ विवादास्पद हिस्सों को लागू न करने का निर्देश दिया था. लेकिन इसके बाद भी केंद्र सरकार ने 6 जून को “वक्फ उम्मीद पोर्टल” नाम से एक डिजिटल प्लेटफॉर्म शुरू करने का ऐलान कर दिया है. सरकार के इस कदम पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने सख्त प्रतिक्रिया दी है और इसे न्यायालय के आदेश की खुली अवहेलना बताया है.
AIMPLB के प्रमुख मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने एक प्रेस नोट जारी करते हुए कहा कि "यह पोर्टल सरकार की एकतरफा कार्रवाई का हिस्सा है, जो न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान नहीं करता." उन्होंने साफ़ शब्दों में कहा कि वक्फ कानून से जुड़े संशोधनों को मुस्लिम समाज पहले ही अस्वीकार कर चुका है. उन्होंने चेताया कि जब तक कोर्ट कोई अंतिम फ़ैसला नहीं सुनाता, तब तक वक्फ से जुड़ी संपत्तियों को इस पोर्टल पर दर्ज नहीं किया जाना चाहिए.
वक्फ संपत्तियाँ धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होती हैं. मुस्लिम समाज, सिख, ईसाई व अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के धार्मिक संगठन और मानवाधिकार मंच भी इस संशोधन कानून को अनुचित और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के विरुद्ध मान रहे हैं. AIMPLB ने सभी संबंधित पक्षों से अपील की है कि वे एकजुट होकर संवैधानिक प्रक्रिया का सम्मान करें और इस पोर्टल से दूरी बनाए रखें.
सरकार का रुख और उठते सवाल
सरकार की ओर से यह पोर्टल “पारदर्शिता और रिकॉर्ड मैनेजमेंट” के नाम पर लाया जा रहा है, लेकिन आलोचक मानते हैं कि यह वास्तविक मुद्दों से ध्यान हटाकर धार्मिक संपत्तियों पर नियंत्रण की एक योजना हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित रहने के बावजूद इस पोर्टल का लॉन्च करना कई संवैधानिक प्रश्न खड़े करता है.
न्यायपालिका की भूमिका और निष्कर्ष
वर्तमान स्थिति में, सुप्रीम कोर्ट की गरिमा और निर्देशों की पालना न केवल कानूनी आवश्यकता है, बल्कि लोकतंत्र की मूल भावना का भी हिस्सा है. यदि सरकार खुद ही न्यायालय के आदेशों को नजरअंदाज करने लगे तो यह केवल एक समुदाय का ही नहीं, बल्कि पूरे संविधान का अपमान माना जाएगा.
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