SIR पर चर्चा के लिए संजय सिंह ने राज्यसभा में दिया नोटिस, बोले- बड़े पैमाने पर लोगों का मताधिकार छिनने का खतरा बढ़ा

SIR में मौजूदा मतदाताओं से नए दस्तावेज मांगे गए हैं. इसे जुटा पाना एक आम आदमी के लिए कठिन है. इन कमियों को बिना सुधारे 12 राज्यों में एसआईआर (SIR) का कराने की जल्दबाजी हुई है.

SIR में मौजूदा मतदाताओं से नए दस्तावेज मांगे गए हैं. इसे जुटा पाना एक आम आदमी के लिए कठिन है. इन कमियों को बिना सुधारे 12 राज्यों में एसआईआर (SIR) का कराने की जल्दबाजी हुई है.

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Mohit Saxena
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आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और सांसद संजय सिंह का कहना है कि देश भर में एसआईआर (SIR) के नाम पर हो रहे घोटाले और लगातार हो रही बीएलओ की मौतों के मुद्दे पर राज्यसभा में चर्चा की मांग को लेकर सोमवार को नोटिस सौंपा है. उन्होंने कहा है कि काम का बोझ, मानसिक तनाव व निलंबन के डर से मात्र 19 दिनों में एसआईआर कर रहे 16 बीएलओ की मौत हो गई है. 

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एसआईआर कराने में जल्दबाजी हुई 

एसआईआर में मौजूदा मतदाताओं से नए दस्तावेज मांगे गए हैं. इसे जुटा पाना एक आम आदमी के लिए कठिन है. इन कमियों को बिना सुधारे 12 राज्यों में एसआईआर कराने की जल्दबाजी हुई है. इससे बड़े पैमाने पर लोगों का मताधिकार छिनने का खतरा बढ़ा है. उन्होंने राज्यसभा से अपील की है कि एसआईआर पर तुरंत रोक लगाई जाए. इसके साथ मतदाता सूची को बहाल की जाए. इसके साथ चुनाव आयोग की जवाबदेही को तय किया जाए. 

नाम काटने की प्रक्रिया का घोर उल्लंघन

संजय सिंह ने राज्यसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमों के नियम 267 (नियमों के निलंबन हेतु प्रस्ताव की सूचना) के अंतर्गत यह नोटिस दिया. इसमें मनमाने तरह से मतदाताओं के वोट काटने बीएलओ की मौतें, मताधिकार से वंचित करने के खतरे और अनुच्छेद 14, 21 और 326 पर गंभीर संकट के संबंध में संदन में चर्चा की मांग की गई. उन्होंने नोटिस में मांग की है कि भारत निर्वाचन आयोग की ओर से चलाए गए विशेष सघन पुनरीक्षण (एसआईआर) ने चुनावी निष्पक्षता पर एक देशव्यापी संकट खड़ा कर दिया है. यह प्रक्रिया, जिसका लक्ष्य मतदाता सूची को अपडेट और शुद्ध करना था. इसके उलट बड़े पैमाने पर मनमाने ढंग से नाम काटने की प्रक्रिया का घोर उल्लंघन और व्यापक मानवीय पीड़ा कारण बना गया है. 

अभूतपूर्व और अनुचित तरीके से नाम हटाए गए

संजय सिंह ने कहा है कि एसआईआर के कारण बिहार में अभूतपूर्व और अनुचित तरीके से नाम हटाए गए हैं. यहां पर बिना किसी उचित सत्यापन के 65 लाख मतदाताओं के नाम को काट दिया गया. कई विधानसभा क्षेत्रों में हटाए गए नामों की संख्या बीते जीत के अंतर से भी अधिक है. यह प्रवासियों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों को लक्षित करके उन्हें मताधिकार से वंचित करने की आशंका को जन्म देता है. अपील करने के किसी सार्थक तंत्र का न होना और नाम हटाने की अपारदर्शी प्रक्रिया, उचित प्रक्रिया और पारदर्शिता की पूर्ण विफलता को दर्शाती है.

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