केंद्र सरकार ने मौजूदा प्रावधानों के तहत बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने से मना कर दिया है। ऐसे में अब तय माना जा रहा है कि विपक्ष इस मुद्दे को सियासी धार देकर इसका लाभ लेने की कोशिश करेगा।
दरअसल, 2005 में सत्ता में आने के बाद से ही बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर जदयू मुखर रही है। जदयू इस मुद्दे को लेकर बिहार से लेकर दिल्ली तक रैली कर चुकी है। इस मांग को वह हर स्तर पर जाकर उठाती रही है। ऐसे में सोमवार को सदन में सरकार के विशेष राज्य के दर्जे की मांग को नकारने के बाद विपक्ष जदयू को घेरने में जुट गया है।
ऐसे में जदयू असहज होगा। राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद और सांसद मनोज झा ने इसकी शुरुआत भी कर दी है। जदयू फिलहाल केंद्र में बड़ी साझीदार है और इस मांग के खारिज होने के बाद असहज होना स्वाभाविक है। राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि बिहार की यह बड़ी मांग है।
उन्होंने कहा, आज केंद्र सरकार अगर चल रही है तो इसमें बिहार का बड़ा योगदान है। ऐसे में बिहार की अनदेखी समझ से परे है। उन्होंने कहा कि हम बिहार को विशेष राज्य का दर्जा लेकर रहेंगे। यह लड़ाई संसद से सड़क तक लड़ी जाएगी। बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। उससे पहले चार विधानसभा क्षेत्रों में भी उपचुनाव होना है।
राजद नेताओं के तेवर से साफ है कि आने वाले दिनों में इसको लेकर विपक्षी दल आंदोलन की रूपरेखा तैयार कर सकते हैं। वैसे, सत्ता पक्ष भी राजद को कटघरे में खड़ा कर रहा है। भाजपा के प्रवक्ता राकेश सिंह कहते हैं कि जब लालू प्रसाद केंद्र सरकार में थे तब बिहार को विशेष राज्य का दर्जा क्यों नहीं दिलवाया था। इस मुद्दे को तब उन्होंने उठाया तक नहीं था।
उन्होंने कहा कि इस सरकार ने बिहार को पहले भी 1.65 लाख करोड़ रुपए का विशेष पैकेज दिया था और आगे भी बिहार को मदद मिलेगी। बात बिहार की मदद की है, उसका नाम जो भी रहे।
बहरहाल, इसमें कोई शक नहीं कि विपक्ष इस मुद्दे को धार जरूर देने की कोशिश करेगा, लेकिन सत्ता पक्ष भी उस धार को कमजोर करने की तैयारी में है। अब ऐसे में किसे कितना लाभ मिलता है, यह देखने वाली बात होगी।
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Source : IANS