उत्तर प्रदेश सरकार के कांवड़ यात्रा मार्ग पर आने वाली दुकानों, ढाबों और रेस्टोरेंट संचालकों के नेम प्लेट लगाने के आदेश को लेकर सियासत जारी है। विपक्षी दलों के नेता यूपी सरकार पर निशाना साधते हुए इस फैसले को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने भी दुकानों पर नेम प्लेट वाले फैसले को सरकार से वापस लेने को कहा। इसी बीच भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने यूपी सरकार के इस फैसले का विरोध करने वाले विपक्षी नेताओं को निशाने पर लिया है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर आप नेता संजय सिंह और पूर्णिया से निर्दलीय सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव के पोस्ट के स्क्रीनशॉट भी शेयर किए हैं।
अमित मालवीय ने शनिवार को एक्स पर लिखा, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी और इंडी अलायंस के तथाकथित सेक्युलर नेता उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में 2006 के खानपान व्यवसाय कानून को दलित और मुस्लिम विरोधी बता रहे हैं। जबकि ये सर्व-विदित है कि दलितों और मुसलमानों में कोई भी समानता नहीं है। दलित समाज के लोग सनातन धर्म को मानने वाले हैं और हिंदू विचार में आस्था रखते हैं। बाबा साहेब अंबेडकर की इस्लाम के प्रति सोच जगजाहिर है। उन्होंने इस्लाम को एक विकृत व्यवस्था का पर्याय बताया था। इसमें महिलाओं एवं अन्य धर्म के लोगों के प्रति उपेक्षा का भाव निहित है। बाबा साहेब अंबेडकर ने अपने लेखों के माध्यम से दलित समाज को इस्लाम के प्रति सावधान किया था।
उन्होंने आगे लिखा, ये कानून 2006 में लागू किया गया, उस समय मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, सोनिया गांधी एनएसी की चेयरपर्सन और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। अगर ये कानून भेदभाव को बढ़ावा देता है, तो इसके पोषक कांग्रेस और सपा के नेता हैं। कांवड़ यात्रा शिवभक्तों की अपने आराध्य के प्रति आस्था एवं भक्ति का प्रतीक है। कांवड़ लेकर जाने वालों में बहुत बड़ी संख्या दलित समाज के लोगों की है। ऐसे में ये कहना कि ये कानून दलितों एवं अन्य किसी धर्म के प्रति भेदभावपूर्ण है, सर्वथा अनुचित है। जो लोग इस कानून की आड़ में दलितों एवं मुसलमानों को एक दर्जे पर रखने का प्रयास कर रहे हैं, वो भीम-मीम की राजनीति के द्योतक हैं और बाबा साहेब के विचारों की अवहेलना कर रहे हैं। दलित और मुसलमान कभी भी सामाजिक रूप से एक नहीं रहे हैं और इनको साथ लाने का प्रयास मात्र चुनावी समीकरण साधने का प्रयास है। दलित समाज को ऐसे अवसरवादी नेताओं को दूर रखना चाहिए।
बता दें कि यूपी की तत्कालीन मुलायम सिंह यादव की सरकार में दुकानों पर नेम प्लेट लगाने का कानून लागू हुआ था और यूपीए सरकार ने इस बिल को पास किया था। ये नियम 2006 में ही बनाए गए थे, इसमें कहा गया था कि सभी दुकानदारों, ढाबा मालिकों को अपने नाम के साथ-साथ पता और लाइसेंस नंबर भी लिखना चाहिए।
डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.
Source : IANS