झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य में सांसदों-विधायकों के खिलाफ दर्ज क्रिमिनल केसों की जांच, गवाही और ट्रायल में हो रही देरी पर चिंता जाहिर करते हुए सीबीआई और राज्य सरकार से जवाब मांगा है।
चीफ जस्टिस बीआर षाडंगी और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की बेंच ने गुरुवार को एक पीआईएल पर सुनवाई करते हुए सीबीआई और राज्य सरकार से मौखिक तौर पर कहा कि ऐसे मामलों का निपटारा जल्द से जल्द कराया जाना चाहिए। कोर्ट ने सांसदों-विधायकों के खिलाफ दर्ज क्रिमिनल केसों के मौजूदा स्टेटस पर सीबीआई की ओर से दायर शपथ पत्र में सटीक तथ्यों का उल्लेख नहीं किए जाने पर गहरी नाराजगी जताई।
कोर्ट ने सीबीआई से कहा कि शपथ पत्र में इस बात का जिक्र नहीं है कि एमपी-एमएलए के खिलाफ पेंडिंग केसों का त्वरित निष्पादन कैसे करेंगे? कई बार आदेश जारी किए जाने के बाद भी ऐसे मामलों के निपटारे की गति बेहद धीमी है। ज्यादातर मामलों में गवाही भी सुस्त गति से हो रही है। ट्रायल में देरी से गवाहों पर भी असर पड़ता है।
कोर्ट ने राज्य सरकार और सीबीआई दोनों को एक सप्ताह में शपथ पत्र दाखिल कर बताने को कहा कि ऐसे मामलों में ट्रायल जल्द पूरा करने के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई जाएगी?
सुप्रीम कोर्ट ने कुछ वर्ष पहले देश के सभी हाईकोर्ट को राजनेताओं के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों के त्वरित निष्पादन के लिए दिशा-निर्देश दिए थे। इस निर्देश के आलोक में झारखंड हाइकोर्ट ने राज्य में सांसदों-विधायकों पर दर्ज मामलों को लेकर स्वतः संज्ञान लिया था और इसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था।
इस मामले में सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने सीबीआई और राज्य सरकार के रुख पर पहले भी असंतोष जाहिर किया था।
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Source : IANS